
◼️ विशेषज्ञों ने चेताया: भस्मीकरण से निकला पारा मानव मस्तिष्क के लिए गंभीर खतरा, डब्ल्यूएचओ कहता है – इसकी कोई सुरक्षित सीमा नहीं
8 मई 2025। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों ने एक बार फिर प्रशासनिक उदासीनता और ग़लत सूचना देने के मामलों को उजागर किया है। बुधवार को भोपाल में आयोजित एक प्रेस वार्ता में पीड़ित संगठनों ने भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के उप सचिव केके दुबे पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष झूठी जानकारी पेश करने का गंभीर आरोप लगाया।
यह मामला पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीसी) द्वारा छोड़े गए खतरनाक रासायनिक कचरे के हालिया भस्मीकरण परीक्षण से जुड़ा है, जिसे सरकार ने उच्च न्यायालय की निगरानी में अंजाम दिया। इस प्रक्रिया में कुल 10 टन कचरे का परीक्षणात्मक दहन किया गया, ताकि तय किया जा सके कि इसे इस विधि से निष्पादित किया जा सकता है या नहीं।
लेकिन "भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन" की कार्यकर्ता रचना ढींगरा के अनुसार, परीक्षण से जुड़ी 300-पृष्ठ की तकनीकी रिपोर्ट में मौजूद पारे के रिसाव की जानकारी को जानबूझकर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे से गायब रखा गया। रचना ने दावा किया कि यह न केवल पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के साथ धोखा है, बल्कि न्यायपालिका की प्रक्रिया का भी अपमान है।
◼️ पारा – एक घातक विष
आईआईटी हैदराबाद के पर्यावरण विज्ञानी प्रो. आसिफ कुरैशी ने इस रिपोर्ट के आधार पर "द्रव्यमान संतुलन" का एक वैज्ञानिक विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि 10 टन कचरे के दहन में 1.53 से 6.88 किलोग्राम पारा वातावरण में उत्सर्जित हुआ। उन्होंने बताया कि यह डेटा न केवल खतरनाक है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को सीधे संकट में डालता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पारे के संपर्क में आने की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं मानी जाती। यह विशेष रूप से मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र और किडनी को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं में।
◼️ पीड़ितों की मांग
भोपाल त्रासदी पीड़ित समूहों ने मांग की है कि:
केके दुबे द्वारा प्रस्तुत हलफनामे की स्वतंत्र जांच की जाए।
परीक्षण भस्मीकरण को तत्काल स्थगित किया जाए जब तक सभी पर्यावरणीय प्रभावों का वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं होता।
पारे और अन्य विषैले तत्वों से हुए उत्सर्जन की सार्वजनिक रिपोर्टिंग और निगरानी की जाए।
◼️ पृष्ठभूमि: भोपाल गैस त्रासदी
1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव ने 15,000 से अधिक लोगों की जान ली थी और हजारों आज भी बीमारियों से जूझ रहे हैं। इस त्रासदी के लगभग 40 वर्ष बाद भी रासायनिक कचरे का सुरक्षित निष्पादन एक बड़ा सवाल बना हुआ है।