
राजधानी भोपाल में दो दिवसीय स्ट्रोएंटरोलॉजी सम्मेलन वैसोकॉन 2025 आयोजित
11 मई 2025। वर्तमान चिकित्सा पद्धतियों में तकनीक की भूमिका निर्णायक होती जा रही है। वैसोकॉन 2025 में एआई आधारित डायग्नोस्टिक्स, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी, और वीडियो केस डेमोंस्ट्रेशन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस तरह आधुनिक तकनीक रोगियों के जीवन को बेहतर बना सकती है। एआई आज जीआई ब्लीडिंग की गंभीरता का पूर्वानुमान लगा सकता है, जिससे डॉक्टर बेहतर निर्णय ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आईसीयू निर्णयों में क्लिनिकल स्कोरिंग सिस्टम अब मशीन लर्निंग (एआई) से हो रहे हैं। यह जानकारी राजधानी में आयोजित गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सम्मेलन वैसोकॉन 2025 में निकलकर सामने आई। जिसका विषय था: पिक इन टाइम एंड ट्रीट देम वेल। यह थीम सरल होते हुए भी चिकित्सा के क्षेत्र में एक अत्यंत गहरी और प्रासंगिक चेतावनी है – समय रहते रोग की पहचान करें और मरीज को उचित तथा प्रभावी इलाज दें। इस सिद्धांत के महत्व को खासतौर पर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल वेस्कुलर इवेंट्स और ब्लीडिंग के संदर्भ में समझा गया। इसका आयोजन भोपाल इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और गैस्ट्रोकेयर मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल द्वारा किया गया, जिसमें देशभर के विशेषज्ञों ने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक्ट और लिवर से संबंधित वेस्कुलर इवेंट्स और ब्लीडिंग पर चर्चा की। डॉ. संजय कुमार ने बताया गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीडिंग, वेस्कुलर थ्रॉम्बोसिस या मेसेंटेरिक इस्केमिया जैसे रोग अक्सर अचानक और जीवन के लिए संकटपूर्ण होते हैं। यदि इनकी प्रारंभिक पहचान न हो, तो मरीज की स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है। जीआई ब्लीड जैसे वराइसेल हेमोरेज में समय पर एंडोस्कोपी से ही जीवन बचाया जा सकता है। मेसेंटेरिक इस्केमिया में देर से पहचान सर्जरी की आवश्यकता को बढ़ा सकती है। आईसीयू में मरीजों को समय पर एंटीकोआगुलेंट देना या रोकना निर्णायक हो सकता है। इसलिए, लक्षणों को गंभीरता से लेना, क्लिनिकल अलर्टनेस बनाए रखना और प्राथमिक जांचों को शीघ्र करना ही 'पिक इन टाइम' का मूल है। ब्लीडिंग और थ्रॉम्बोसिस, संक्रमण और कैंसर के साथ, मृत्यु के प्रमुख कारणों में से हैं। डॉ. संजय कुमार ने कहा कि इनकी मूलभूत समझ को समय-समय पर पुनः देखना आवश्यक है। ब्लड बैंक प्रथाओं, डायग्नोस्टिक तकनीकों और उपचार विधियों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिससे इन स्थितियों के प्रबंधन में सुधार आया है।
सम्मेलन के पहले दिन वराइसेल ब्लीडिंग के प्रबंधन पर पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसमें विशेषज्ञों ने विभिन्न दृष्टिकोण साझा किए। इसके साथ ही बच्चों में रेक्टल ब्लीडिंग के मूल्यांकन और प्रबंधन पर विशेष व्याख्यान दिया गया। इसके बाद मेसेंटेरिक इस्केमिया विषय पर पैनल चर्चा हुई, जिसमें सर्जरी और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी के बीच चयन पर विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन में जीआई ब्लीड और थ्रॉम्बोसिस की भविष्यवाणी और प्रबंधन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही आईसीयू में एंटीकोआगुलेशन के उपयोग और इसके जोखिमों पर चर्चा की गई। यह सम्मेलन जीआई ट्रैक्ट और लिवर से संबंधित वेस्कुलर इवेंट्स और ब्लीडिंग के क्षेत्र में नवीनतम ज्ञान और प्रथाओं को साझा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच रहा। डा अजय जैन, डीएम गेस्ट्रोएंटोलॉजी,इंदौर ने बताया कि स्कीमिक डिजीज ऑफ द लीवर एंड स्कीमिक डिजीज ऑफ गेस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्रेक बीमारी में जल्दी डिटेक्ट होने पर इलाज संभव है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें मल्टीपल स्पेशलिटी लगती है। गेस्ट्रोलॉजिस्ट सस्पेक्ट करे, रेडियोलॉजिस्ट डायग्नोस्ट करे, ट्रीटमेंट के लिए हेमोटोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ती है। सर्जन्स की भी जरूरत पड्ती है। कौन की दवाएं इस बीमारी में देना है या कौन की नहीं देना है वह इस सेमीनार में डिस्कस हुए हैं। जो सबकी काफी मदद करेंगे। डा. एस.पी. मिश्रा, प्रयागराज ने कहा कि नसों की जो प्रॉब्लम कही डिस्कस नहीं होती, इसकी जानकारी गेस्ट्रो इंट्रोलॉजिस्ट में कम है। इसके बारे में विस्तार से चर्चा हुई। इसमें गेस्ट्रो इंट्रोलॉजिस्ट के अलावा जीआई सर्जन, इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट, हीमोटोलॉजिस्ट, सर्जन सभी को इनवॉल्व किया गया है। सबकी अपनी अपनी राय होगी। इस सेमीनार से इसकी जागरूकता बढेगी जो इलाज में मददगार होगी। डा. स़्वपनिल पेंढारकर, डीएनबी गेस्ट्रो,उज्जैन ने बताया कि पेट, छोटी आंत या बड़ी आंत से अगर ब्लीडिंग हो रही है तो नए एंडोस्कोपी एसेसरीज आती है जिनका उपयोग किस प्रकार ब्लीडिंग रोकने में किया जा सकता है इसकी जानकारी दी गई। इससे पेशेंट को सर्जरी नहीं करानी पड़ती। इस सेमीनार में इस तरह की नई तकनीकें बताई जा रही हैं और उस पर चर्चा हो रही है। डा सलीम नाईक, जीआई सर्जन,दिल्ली कहा कि इंटेस्टाइनल ट्रेक में ब्लीडिंग होती है जिसके अलग अलग लक्षण होते हैं उनके बारे में चर्चा की गई। इसके साथ ही जितनी बीमारियों से इंटेस्टाइनल में ब्लीडिंग होती है उसके बारे में बताया गया। इन पेशेंट को कैसे आइडेंटीफाई किया जाए, कैसे मैनेज किया जाए इसे विस्तार से बताया गया। सर्जरी में जो नए डेवलपमेंट हुए है उनके बारे में भी जानकारी दी गई।