×

क्या ट्रांसजेंडर महिलाएं दहेज उत्पीड़न केस कर सकती हैं? पढ़िए कोर्ट का निर्णय

News from Bhopal, Madhya Pradesh News, Heritage, Culture, Farmers, Community News, Awareness, Charity, Climate change, Welfare, NGO, Startup, Economy, Finance, Business summit, Investments, News photo, Breaking news, Exclusive image, Latest update, Coverage, Event highlight, Politics, Election, Politician, Campaign, Government, prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद, समाचार, हिन्दी समाचार, फोटो समाचार, फोटो
Place: अमरावती                                                👤By: prativad                                                                Views: 489

24 जून 2025। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि विषमलैंगिक विवाह में ट्रांसजेंडर महिला अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है। न्यायमूर्ति वेंकट ज्योतिर्मई प्रताप ने इस बात पर जोर दिया कि एक ट्रांसजेंडर महिला, जो खुद को महिला के रूप में पहचानती है और एक पुरुष के साथ वैवाहिक संबंध में रहती है, उसे दहेज संबंधी उत्पीड़न और क्रूरता से महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के संरक्षण से बाहर नहीं रखा जा सकता है।

इसने कहा, "विषमलैंगिक संबंध में एक ट्रांसजेंडर महिला को अपने पति या उसके रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।" यह घटनाक्रम पति द्वारा दायर की गई याचिका में सामने आया है, जिसमें उसने धारा 498-ए आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत उसके और उसके माता-पिता के खिलाफ पत्नी, एक ट्रांसवुमन द्वारा दायर की गई शिकायत को खारिज करने की मांग की है।

उसने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने उसकी ट्रांसजेंडर पहचान के बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार उससे शादी की। उसने आरोप लगाया कि उसके परिवार ने 1,00,000 रुपये नकद, 25 सोने के सिक्के, 500 ग्राम चांदी और 2,00,000 रुपये के घरेलू सामान सहित दहेज दिया। उसने आगे आरोप लगाया कि शादी के कुछ समय बाद पति ने उसे छोड़ दिया और बाद में उसे पति के फोन से धमकी भरे और अश्लील संदेश मिलने लगे। उसने आरोप लगाया कि उसके ससुराल वालों ने इन कार्रवाइयों को अंजाम दिया।

न्यायमूर्ति वेंकट ज्योतिर्मई प्रताप की एकल पीठ ने कहा कि ट्रांसजेंडर महिलाओं को संविधान द्वारा प्रदत्त सम्मान, पहचान और समानता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने टिप्पणी की, “केवल प्रजनन क्षमता के आधार पर उन्हें 'महिला' की कानूनी परिभाषा से बाहर करना अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन होगा।”

यह फैसला उस याचिका के संदर्भ में आया, जिसमें पति ने अपनी ट्रांसजेंडर पत्नी द्वारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज शिकायत को रद्द करने की मांग की थी। पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद पति ने उसे छोड़ दिया और उसे धमकी व अश्लील संदेश मिलने लगे। उसने यह भी दावा किया कि विवाह के समय उसके परिवार ने नकद, सोना, चांदी और घरेलू सामान सहित दहेज दिया था।

हालाँकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शिकायत में लगाए गए आरोप सामान्य और अस्पष्ट हैं तथा कोई ठोस साक्ष्य नहीं दिए गए हैं। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया कोई मुकदमा नहीं बनता है और ऐसे आरोप न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं। इसलिए, न्यायालय ने याचिकाकर्ता पति और उसके परिवार के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी।

अदालत ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) और मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को विवाह, घरेलू हिंसा और अन्य पारिवारिक कानूनों में समान अधिकार प्राप्त हैं।

केस शीर्षक: विश्वनाथन कृष्ण मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
याचिका संख्या: क्रिमिनल पिटिशन नं. 6783/2022
याचिकाकर्ता के वकील: थंडवा योगेश
राज्य की ओर से वकील: सहायक लोक अभियोजक के. प्रियंका लक्ष्मी

Related News

Latest News

Global News