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शीर्ष वैश्विक कंपनियाँ अब चीनी AI को दे रही प्राथमिकता, अमेरिकी प्रभुत्व पर संकट: WSJ रिपोर्ट

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Place: नई दिल्ली                                                👤By: prativad                                                                Views: 231


— प्रतिवाद डेस्क | वाशिंगटन/बीजिंग | 3 जुलाई 2025

दुनिया की कई अग्रणी पश्चिमी कंपनियाँ अब अमेरिकी के बजाय चीनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मॉडल को अपना रही हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यह रुझान अमेरिका के वैश्विक AI प्रभुत्व और उससे जुड़े संभावित अरबों डॉलर के मुनाफे के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरा है।

HSBC, स्टैंडर्ड चार्टर्ड और सऊदी अरामको जैसी बड़ी वैश्विक कंपनियाँ अब डीपसीक (DeepSeek) और अलीबाबा जैसे चीनी तकनीकी दिग्गजों द्वारा विकसित AI मॉडल्स का परीक्षण और उपयोग कर रही हैं। खास बात यह है कि Amazon Web Services (AWS), Microsoft और Google जैसे अमेरिकी क्लाउड प्रदाता भी अपने ग्राहकों को ये चीनी AI सेवाएं प्रदान कर रहे हैं – यह सब व्हाइट हाउस की सुरक्षा चिंताओं के बावजूद हो रहा है।

क्यों कर रही हैं कंपनियाँ चीनी AI को वरीयता?
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी कंपनियाँ अमेरिकी मॉडल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन और कम लागत का कॉम्बिनेशन दे रही हैं। Sensor Tower के आंकड़ों के अनुसार, DeepSeek को अब तक 125 मिलियन बार वैश्विक स्तर पर डाउनलोड किया गया है, जबकि ChatGPT के 910 मिलियन डाउनलोड हैं – जो एक उभरते हुए तकनीकी विकल्प की ओर इशारा करता है।

चीन की कंपनियाँ अपने AI मॉडल्स को ओपन-सोर्स बनाकर वैश्विक उपयोगकर्ताओं को उन्हें अपनाने और अनुकूलित करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उदाहरण के लिए:

दक्षिण अफ्रीका की विटवाटरसैंड यूनिवर्सिटी ने DeepSeek को शोध परियोजनाओं के लिए चुना है।

जापान के अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने अमेरिकी विकल्पों की जगह अलीबाबा का 'Qwen' मॉडल चुना है।

LatentNode जैसे वैश्विक प्लेटफॉर्म्स पर अब लगभग 20% उपयोगकर्ता DeepSeek के साथ AI टूल्स विकसित कर रहे हैं।

अमेरिकी चिंता: वैश्विक AI मानक खतरे में
AI उद्योग में यह बदलाव वॉशिंगटन में गहरी चिंता का कारण बन रहा है। Microsoft के अध्यक्ष ब्रैड स्मिथ ने अमेरिकी सीनेट के समक्ष कहा:

"इस दौड़ को कौन जीतेगा – अमेरिका या चीन – यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बाकी दुनिया किसकी तकनीक को अपनाती है।"

वहीं OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन ने चेतावनी दी है कि Zhihu AI जैसे चीनी मॉडल तेजी से उभरते बाज़ारों में बढ़त बना रहे हैं। उन्होंने हाल ही में पेंटागन के साथ 200 मिलियन डॉलर का करार किया है और दो टूक कहा, "हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोकतांत्रिक AI, तानाशाही AI पर विजय प्राप्त करे।"

नीति और नैरेटिव का संघर्ष
भले ही चीनी AI मॉडल्स के ओपन-सोर्स वर्जन वैश्विक उपयोग के लिए उपलब्ध हैं, परंतु विश्लेषकों का मानना है कि इनमें कई बार चीन सरकार की नीतियों और सेंसरशिप की छाया दिखाई देती है। यदि ये मॉडल वैश्विक स्तर पर मुख्यधारा बन जाते हैं, तो चीन को अपने डिजिटल मानक और नैरेटिव थोपने का एक अप्रत्यक्ष लेकिन प्रभावी रास्ता मिल सकता है।

इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए, अमेरिकी सांसद चीनी AI पर प्रतिबंध लगाने और सरकारी एजेंसियों को इनके उपयोग से रोकने के लिए कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं।

अमेरिका की जवाबी रणनीति: अरबों डॉलर की पहल
चीनी मॉडल की आक्रामक बढ़त को रोकने के लिए अमेरिका भी तेज़ी से कदम उठा रहा है:

Meta ने सुपर इंटेलिजेंट AI विकसित करने के लिए एक नया डिवीजन लॉन्च किया है।

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 500 बिलियन डॉलर की संघीय पहल का समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य अमेरिका की तकनीकी बढ़त बनाए रखना है।

AI के क्षेत्र में बढ़ता चीनी प्रभाव केवल तकनीकी प्रतिस्पर्धा नहीं है, यह वैश्विक डिजिटल नीतियों, व्यावसायिक हितों और राजनीतिक विचारधाराओं की भी लड़ाई बन चुका है। जिस तरह से बड़ी-बड़ी कंपनियाँ चीनी AI मॉडल्स को अपना रही हैं, उससे यह साफ है कि आने वाले समय में AI तकनीक केवल पश्चिम का क्षेत्राधिकार नहीं रहेगा।

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