
7 सितंबर 2025। टोक्यो की चमक-दमक के पीछे एक स्याह तस्वीर भी छिपी है। यहां की गलियों और रेलवे स्टेशनों के पास अक्सर नज़र आती हैं वे किशोर लड़कियां जिन्हें स्थानीय लोग "टोयोको किड्स" कहते हैं। यह नाम शिबुया इलाके की टोक्यू डिपार्टमेंट स्टोर बिल्डिंग और उसके आसपास के क्षेत्र से पड़ा, जहां रात ढलते ही ये बेघर लड़कियां इकट्ठा होती हैं।
कौन हैं "टोयोको किड्स"?
ये ज़्यादातर 13 से 19 साल की किशोरियां होती हैं, जो घर छोड़ चुकी हैं या जिन्हें परिवार से सहयोग नहीं मिलता। किसी की वजह घरेलू हिंसा होती है, किसी की वजह गरीबी, तो किसी की वजह परिवार की अनदेखी। जापान की समाजिक छवि आधुनिक और सम्पन्न है, लेकिन इन लड़कियों की मौजूदगी बताती है कि असल में हालात इतने आदर्श नहीं हैं।
सड़क पर ज़िंदगी
टोयोको किड्स के पास न तो स्थायी ठिकाना है और न ही स्थायी नौकरी। कई बार ये लड़कियां खुद को बचाने और पेट भरने के लिए खतरनाक रास्ते चुनने को मजबूर हो जाती हैं। कुछ छोटी-मोटी पार्ट टाइम नौकरियों से गुज़ारा करती हैं, जबकि कुछ "एनजो कोसाई" (compensated dating) जैसे शोषणकारी चक्र में फँस जाती हैं। यह जापान में एक बड़ा सामाजिक संकट माना जाता है।
सरकारी और सामाजिक प्रतिक्रिया
पिछले कुछ सालों में जापानी सरकार और एनजीओ ने इन लड़कियों तक पहुँचने की कोशिश की है। अस्थायी आश्रय गृह, काउंसलिंग और हेल्पलाइन जैसी योजनाएं बनाई गईं। लेकिन समस्या यह है कि कई किशोरियां अधिकारियों पर भरोसा नहीं करतीं। वे पुलिस या सामाजिक संस्थाओं से दूरी बनाए रखती हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि उन्हें फिर से घर भेज दिया जाएगा या वे और बड़े खतरे में पड़ जाएंगी।
सोशल मीडिया की भूमिका
दिलचस्प बात यह है कि ये लड़कियां आजकल सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती हैं। ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर वे अपनी मौजूदगी दिखाती हैं, मदद मांगती हैं या नए "दोस्तों" से मिलती हैं। कई मामलों में यह प्लेटफॉर्म उनके लिए सहारा बनते हैं, तो कई बार और बड़े खतरों का दरवाज़ा खोल देते हैं।
छिपा हुआ जापान
"टोयोको किड्स" जापान के उस पहलू को उजागर करती हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय समाज शायद ही जानता हो। जापान को हम अक्सर तकनीक, अनुशासन और सम्पन्नता के प्रतीक के रूप में देखते हैं। लेकिन इन बेघर किशोर लड़कियों की कहानी बताती है कि आर्थिक शक्ति और सामाजिक स्थिरता के पीछे दरारें भी मौजूद हैं।
सवाल हमारे लिए भी
भारत जैसे देशों के लिए भी यह कहानी एक आईना है। क्योंकि जब तेज़ी से बदलती शहरी ज़िंदगी में परिवार कमजोर पड़ने लगते हैं, तब सबसे पहले बच्चे ही प्रभावित होते हैं। सवाल यह है कि क्या हम अपने समाज में "टोयोको किड्स" जैसी स्थिति बनने से रोक पा रहे हैं?