4 नवंबर 2025। हेलसिंकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसा दावा किया है जो दुनिया की सबसे पेचीदा वैज्ञानिक समस्याओं में से एक को नए मोड़ पर ले जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यूरेनियम खदानों में ऐसे सूक्ष्म जीव खोजे हैं जो रेडियोधर्मी पदार्थों को खाकर उन्हें स्थिर, गैर-रेडियोधर्मी यौगिकों में बदल सकते हैं। यानी परमाणु कचरा खत्म करने का जैविक तरीका।
यह जीव Deinococcus radiodurans कहलाता है — धरती के सबसे टफ माइक्रोब्स में से एक। यह इंसानों की तुलना में करीब 3,000 गुना अधिक रेडिएशन झेल सकता है और अपने DNA को तुरंत ठीक कर लेता है। हेलसिंकी की वैज्ञानिक टीम ने इस बैक्टीरिया को जेनेटिकली मॉडिफाई किया है ताकि यह खतरनाक रेडियोआइसोटोप्स को ऊर्जा स्रोत की तरह इस्तेमाल कर सके।
परिणाम हैरान करने वाले हैं। जहां कुछ परमाणु कचरे की रेडियोएक्टिविटी खत्म होने में 24,000 साल लगते हैं, यह माइक्रोब उसे 50 साल से भी कम समय में निष्क्रिय कर सकता है। विज्ञान कथा जैसा लगता है, लेकिन टेस्ट डेटा कह रहा है कि यह संभव है।
फिनलैंड ने इस तकनीक को केवल लैब तक नहीं रखा। दुनिया के पहले स्थायी परमाणु कचरा भंडारण स्थल Onkalo में इसका परीक्षण चल रहा है। बैक्टीरिया को सीज़ियम-137 और स्ट्रोंशियम-90 जैसे सबसे खतरनाक आइसोटोप्स पर लगाया गया है, जो आमतौर पर हजारों साल तक सक्रिय रहते हैं।
बेशक, यह कोई साइंस-फिक्शन फिल्म नहीं है, जहाँ बैक्टीरिया को खुले रिएक्टर में छोड़ दिया जाए। परीक्षण पूरी तरह नियंत्रित बायोरिएक्टर्स में किए जा रहे हैं और लंबी अवधि के नतीजों का इंतज़ार करना अभी बाकी है। अगर सब ठीक रहा, तो आने वाले वर्षों में ‘कचरा गाड़ो और भूल जाओ’ वाली रणनीति इतिहास बन सकती है।
यह तकनीक सफल होती है तो परमाणु ऊर्जा को लेकर बहस भी बदल जाएगी। स्वच्छ ऊर्जा, बिना हज़ारों साल के कचरे के बोझ के — कल्पना अच्छी है, और अब शायद हकीकत बनने जा रही है।
कभी सोचा था, रेडिएशन को किसी ने स्नैक्स समझ लिया होगा? विज्ञान कभी-कभी वाकई मज़ेदार मोड़ ले आता है।














