
2 मार्च 2025। एक समय था जब संयुक्त राज्य अमेरिका पूरी दुनिया के 66% सोने का नियंत्रण रखता था। उस दौर में अमेरिकी डॉलर की बैकिंग सोने के साथ हुआ करती थी, यानी प्रत्येक डॉलर के बदले सोने का भंडार सुरक्षित रहता था। लेकिन जब यह व्यवस्था खत्म हुई, तो केंद्रीय बैंकों को मुद्रा छापने की पूरी स्वतंत्रता मिल गई। इस फैसले के बाद से आम नागरिकों की क्रय शक्ति लगातार गिरती गई, क्योंकि मुद्रास्फीति बढ़ने के साथ ही पैसे का मूल्य घटता रहा।
अब, अमेरिका में सोने के मानक (Gold Standard) को फिर से लागू करने की संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो गई है। कई प्रमुख राजनेताओं का मानना है कि अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए इसे दोबारा अपनाना जरूरी है। पूर्व राष्ट्रपति और आगामी चुनावों के प्रबल दावेदार डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसे लेकर अपनी राय जाहिर की है। उन्होंने कहा कि "गोल्ड स्टैंडर्ड से हटना एक गलती थी।" इस बयान के बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि ट्रंप प्रशासन की वापसी की स्थिति में अमेरिका में एक बार फिर सोने की बैकिंग वाली मौद्रिक प्रणाली लागू की जा सकती है।
4 मार्च और गोल्ड स्टैंडर्ड का ऐतिहासिक संदर्भ
डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों के बीच, 4 मार्च को होने वाले संयुक्त सत्र (Joint Session) पर भी सबकी नजरें टिकी हैं। यह अमेरिकी कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण सत्र होगा, जहां ट्रंप पहली बार शामिल होंगे।
इतिहास पर नजर डालें तो, 4 मार्च की तारीख अमेरिका में सोने के मानक से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की गवाह रही है। 1933 से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण 4 मार्च को ही होता था। आखिरी बार 4 मार्च 1933 को राष्ट्रपति पद की शपथ फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट (FDR) ने ली थी। उस समय अमेरिका ‘ग्रेट डिप्रेशन’ (महामंदी) के दौर से गुजर रहा था, जब स्टॉक मार्केट क्रैश कर चुका था और बैंकों पर भारी दबाव था।
रूजवेल्ट ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही सोने के निजी स्वामित्व पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि सरकार के पास पर्याप्त भंडार हो और डॉलर की बैकिंग मजबूत की जा सके। उस दौर में सोना जनता के पास अधिक मात्रा में था, जबकि सरकार के पास सीमित भंडार था। इसलिए उन्होंने एक नया आर्थिक मॉडल अपनाया, जिससे अमेरिका की मौद्रिक नीति में बड़ा बदलाव आया।
क्या अमेरिका फिर अपना सकता है गोल्ड स्टैंडर्ड?
ट्रंप के बयान के बाद यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या अमेरिका दोबारा गोल्ड स्टैंडर्ड की ओर लौट सकता है? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा संभव है, खासकर तब जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था बढ़ते कर्ज संकट का सामना कर रही है। कुछ लोग इसे असंभव भी मानते हैं, क्योंकि मौजूदा वित्तीय ढांचा पूरी तरह से फिएट करेंसी (Fiat Currency) पर आधारित हो चुका है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि गोल्ड स्टैंडर्ड लागू नहीं भी होता, तो अमेरिका किसी अन्य ठोस संपत्ति—जैसे बिटकॉइन या अन्य डिजिटल गोल्ड आधारित परिसंपत्तियों—को अपनी मौद्रिक नीति में शामिल कर सकता है।
आगामी दिनों में 4 मार्च का सत्र और ट्रंप के अगले कदम इस विषय पर और अधिक स्पष्टता ला सकते हैं। यदि ट्रंप सत्ता में वापस आते हैं, तो क्या वह अमेरिकी डॉलर की बैकिंग को फिर से सोने के साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।