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भोपाल गैस त्रासदी: पीढ़ियों तक फैला जहर, मिट नहीं रहा दर्द

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Place: bhopal                                                👤By: prativad                                                                Views: 1668

25 नवंबर 2024। यूनियन कार्बाइड के कारखाने से हुई भयावह गैस त्रासदी के 40 वर्ष बीत जाने के बाद भी, इसका विषैला साया भोपालवासियों के जीवन पर छाया हुआ है। हाल के शोधों ने इस बात को और पुख्ता किया है कि इस त्रासदी का प्रभाव सिर्फ उस रात मौजूद लोगों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पीढ़ियों तक फैल गया है।

गर्भ में पल रहे बच्चों तक पहुंचा जहर: पूर्व फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. डी.के. सतपथी ने बताया कि त्रासदी के दौरान गर्भवती महिलाओं के शिशुओं में भी जहरीली गैसों का प्रभाव देखा गया था। उन्होंने हजारों शवों के पोस्टमार्टम किए और पाया कि गैस के कारण कई तरह की बीमारियां पैदा हुईं। डॉ. सतपथी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस विषय पर शोध को बंद कर देना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

पीढ़ी दर पीढ़ी फैल रहा रोग: त्रासदी के प्रत्यक्षदर्शी और पीड़ितों के परिवारजन आज भी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। कैंसर, अस्थमा, और अन्य गंभीर बीमारियां इस क्षेत्र में आम हो गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब जहरीली गैस के दीर्घकालिक प्रभाव का परिणाम है।

न्याय की लड़ाई जारी: गैस त्रासदी के पीड़ित आज भी न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने सरकार और यूनियन कार्बाइड कंपनी पर उचित मुआवजा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का दबाव बनाया है।

शोध और जागरूकता की आवश्यकता: इस त्रासदी से सबक लेते हुए, हमें औद्योगिक सुरक्षा के मानकों को और मजबूत करना होगा। साथ ही, इस तरह की घटनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों पर शोध को प्रोत्साहित करना चाहिए। भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसी घटना है जिसने दुनिया को औद्योगिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाने की जरूरत को समझाया।

स्मृति और संघर्ष के प्रतीक आयोजन
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों ने 4 दिसंबर तक पोस्टर प्रदर्शन और एक रैली का आयोजन किया है। रैली में औद्योगिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

भोपाल गैस त्रासदी न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के औद्योगिक इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है। 40 साल बाद भी इसके प्रभाव समाज और पर्यावरण पर स्पष्ट दिख रहे हैं। इससे जुड़े शोध और जागरूकता को जारी रखना जरूरी है ताकि ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।

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