
21 अगस्त 2025। राजधानी भोपाल ने स्वच्छता और सतत विकास की दिशा में देश को एक नई राह दिखाई है। भोपाल नगर निगम (BMC) ने 10 नंबर बाज़ार के पास भारत का पहला “कचरा कैफ़े” शुरू किया है, जो न सिर्फ़ कचरे के प्रबंधन का अभिनव मॉडल है बल्कि लोगों को पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भागीदारी का अवसर भी देता है।
◼️ कचरा अब बोझ नहीं, एक संसाधन
यह पहल इस सोच पर आधारित है कि कचरा सिर्फ़ गंदगी नहीं बल्कि एक उपयोगी संसाधन है। अगर इसे सही तरीके से अलग करके पुन: प्रयोग किया जाए, तो यह न केवल प्रदूषण घटा सकता है बल्कि रोजगार, कला और नए व्यावसायिक अवसर भी पैदा कर सकता है।
◼️ कैफ़े की संचालिका अजिता सहबलोक का कहना है –
“यह देश का पहला ऐसा कैफ़े है, जहां अख़बार, प्लास्टिक, कार्डबोर्ड, पुराने मोबाइल, टूटा चार्जर, कपड़े या ई-कचरा लाने पर लोग ‘कचरा मुद्रा’ प्राप्त करते हैं। युवाओं में इस पहल को लेकर उत्साह दिख रहा है और धीरे-धीरे यह जागरूकता अभियान पूरे शहर में फैल रहा है।”
◼️ क्या है ‘कचरा मुद्रा’?
इस कैफ़े में लाई गई हर वस्तु का वज़न किया जाता है और उसी अनुपात में ग्राहक को डिजिटल ‘कचरा मुद्रा’ SMS के माध्यम से दी जाती है।
इस मुद्रा से ग्राहक कैफ़े परिसर में नाश्ता कर सकते हैं।
कला और शिल्प से बने उत्पाद खरीद सकते हैं।
आने वाले समय में इसे स्थानीय दुकानों और सार्वजनिक परिवहन में भी जोड़ने की योजना है।
◼️ कचरा प्रबंधन की बड़ी चुनौती
भारत में प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 30% ही सही ढंग से रीसाइक्लिंग या निपटान तक पहुँच पाता है। प्लास्टिक और ई-कचरा सबसे बड़ी समस्या बन चुके हैं, जो नदियों और ज़मीन दोनों को प्रदूषित करते हैं। ऐसे में भोपाल का ‘कचरा कैफ़े’ एक मॉडल की तरह सामने आया है, जो शहरी कचरा प्रबंधन को सामुदायिक भागीदारी से जोड़ता है।
◼️ कला, पर्यावरण और रोज़गार का संगम
इस कैफ़े में स्थानीय कलाकारों और महिलाओं के स्व-सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पाद भी प्रदर्शित और बेचे जाते हैं। यानी कचरे से बने सजावटी सामान, पेंटिंग, खिलौने और उपयोगी घरेलू वस्तुएं भी उपलब्ध हैं।
इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है बल्कि स्थानीय स्तर पर रोज़गार और आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलता है।
◼️ भविष्य की दिशा
भोपाल नगर निगम की योजना है कि आने वाले समय में ऐसे “कचरा कैफ़े” शहर के अन्य हिस्सों में भी खोले जाएं और स्कूल-कॉलेजों के साथ मिलकर इसे एक शैक्षणिक आंदोलन बनाया जाए। इससे बच्चों और युवाओं में “Reduce, Reuse, Recycle” की आदत मजबूत होगी।
◼️ प्रतिवाद टिप्पणी: भोपाल का यह प्रयोग बताता है कि अगर नागरिक, प्रशासन और समाज साथ मिलकर काम करें, तो कचरा भी एक अवसर बन सकता है। यह पहल न सिर्फ़ भोपाल बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल साबित हो सकती है।