
10 अक्टूबर 2025। मध्य प्रदेश में गोंद माफिया एक नए तरीके से सक्रिय हो गए हैं। ये माफिया धावड़ा और सलाई जैसे पेड़ों में इथेफोन नामक रसायन का इंजेक्शन लगाकर अप्राकृतिक तरीके से गोंद निकाल रहे हैं। इस प्रक्रिया से पेड़ों को गंभीर नुकसान होता है और यह गोंद इंसानी सेहत, खासकर प्रसूता महिलाओं के लिए, हानिकारक माना जा रहा है।
वन विभाग ने चेतावनी दी है कि इथेफोन का इस्तेमाल गैरकानूनी है और ऐसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कैसे हो रहा है नुकसान
इथेफोन इंजेक्शन लगाने से पेड़ असामान्य मात्रा में गोंद छोड़ते हैं, जिससे उनकी उम्र घट जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि पांच से छह साल में ऐसे पेड़ सूखने लगते हैं। गोंद निकालने का पारंपरिक मौसम नवंबर से जून तक होता है, लेकिन रसायनिक दखल से यह प्रक्रिया अब खतरे में पड़ गई है।
तीन जिलों को मिली थी सीमित अनुमति
राज्य सरकार ने पिछले वर्ष बुरहानपुर, खंडवा और देवास जिलों में गोंद निकालने की अनुमति दी थी। यह अनुमति इस शर्त पर दी गई थी कि गोंद केवल प्राकृतिक तरीके से निकाली जाएगी। बाकी जिलों में अब भी प्रतिबंध जारी है। यह मामला कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा द्वारा उठाए जाने के बाद वन विभाग के स्तर पर विचार हुआ था।
क्यों बढ़ रही है मांग
गोंद का औषधीय और औद्योगिक उपयोग बहुत व्यापक है। सलई, गुग्गल, धावड़ा, कुल्लू, पलाश, खैर, बबूल और साजा जैसे पेड़ों से प्राप्त गोंद का उपयोग औषधियों, पेंट, वार्निश, अगरबत्ती, पेपर, टेक्सटाइल, खाद्य पदार्थों और पेट्रोलियम उद्योग में होता है। इसकी खुशबू और उपयोगिता के कारण निर्यात भी होता है, जिससे अवैध व्यापार बढ़ रहा है।
क्या है इथेफोन
इथेफोन एक रसायन है जो सामान्यतः फल पकाने, फूल लाने या रबर उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन अब माफिया इसका दुरुपयोग पेड़ों से तेजी से गोंद निकालने में कर रहे हैं।
वन विभाग की चेतावनी
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संरक्षण शाखा) विभाष ठाकुर ने कहा,
“इथेफोन इंजेक्शन लगाकर गोंद निकालना अपराध है। अगर ऐसा होता पाया गया तो संबंधित लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
गोंद माफियाओं के इस रासायनिक धंधे पर लगाम लगाने के लिए वन विभाग ने निगरानी बढ़ा दी है, लेकिन सवाल यही है — क्या जंगलों की सेहत और पर्यावरण को बचाने के लिए सख्त कदम अब उठाए जाएंगे या यह गोंद माफिया फिर एक और सीजन में जंगलों को जहर पिलाएंगे?