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स्व की पहचान के आधार पर ही होगा राष्ट्र निर्माण : सुरेश भैयाजी जोशी

Location: भोपाल                                                 👤Posted By: prativad                                                                         Views: 974

भोपाल: महिला समन्वय, भोपाल विभाग के शक्ति समागम में 2000 से अधिक मातृशक्ति ने की सहभागिता
16 अप्रैल 2023। अपने 'स्व' को पहचानें। 'स्व' को जितना हम जानेंगे उसके आधार पर ही राष्ट्र निर्माण में हम अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने के लिए सिद्ध हो सकेंगे। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य एवं महिला समन्वय के अखिल भारतीय पालक अधिकारी सुरेश उपाख्य भैया जी जोशी ने महिला समन्वय, भोपाल विभाग द्वारा पीपुल्स मॉल में आयोजित "शक्ति समागम" सम्मलेन में मातृशक्ति को संबोधित करते हुए कही। वे देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए मातृशक्ति की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उनकी भूमिका पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि पूर्व के कालखंड में महिलाओं ने समाज को बलशाली करने बेहतर कार्य किया है, लेकिन बीच के आक्रमण काल में सुरक्षा के कारण कुछ बंधन आ गए। जिसके कारण स्वभाव बन गया कि बहनों का काम घर के काम तक ही सीमित है, परंतु यह कालखंड अब नहीं रहा। आज पुरुष जो काम कर सकते हैं वो महिलाएं भी कर सकती हैं। सीमाओं में बंधे नहीं। जहां हैं वहीं से राष्ट्र निर्माण में बेहतर तरीके से अपनी भूमिका का निर्वहन करें क्योंकि समाज के उत्थान में सभी की भूमिका रहती है। उन्होंने उद्योग जगत, सामाजिक नेतृत्व, राजनीति, सेना, वैज्ञानिक सभी क्षेत्र में महिलाओं के बेहतर करने की विस्तृत चर्चा की।

उन्होंने शंकुतला द्वारा निभाई माँ की भूमिका, रानी अहिल्या बाई होलकर की आदर्श राज्य व्यवस्था बनाने, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा अकेले महिलाओं की फौज तैयार करने, कल्पना चावला द्वारा वैश्विक मंच पर भारत को आगे बढ़ाने की बात पर प्रकाश डाला। उन्होंने देश को विकास की राह पर लाने के लिए महिलाओं से 'स्व' को पहचानकर कार्य करने की बात कही। साथ ही जीवन को संस्कारित बनाकर परंपराओं को नई दिशा देने की बात पर भी जोर दिया। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्यक्षेत्र के सह क्षेत्र कार्यवाह हेमंत मुक्तिबोध, महिला सम्मलेन शक्ति समागम की प्रान्त संयोजिका डॉ सुनंदा सिंह रघुवंशी, विभाग संयोजिका कुसुम सिंह उपस्थित थीं। मंच संचालन डॉ वंदना गांधी ने किया। कार्यक्रम का आभार कुसुम सिंह जी व्यक्त किया।

तीन सत्रों में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में 2000 से अधिक की संख्या में समाज के सभी वर्गों की मातृशक्ति ने सहभागिता की। इस दौरान विभिन्न विषयों पर ज्ञानवर्धक उध्बोधन के साथ कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, गीत इत्यादि का भी आयोजन किया गया।

हीनता के बोध से मुक्त होकर स्वयं में आत्मविश्वास जागृत करे मातृशक्ति : श्री मुक्तिबोध
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता हेमंत मुक्तिबोध ने महिलाओं की भारतीय संस्कृति में स्तिथि एवं इसके बीच में आये व्यवधान पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारा पूरा इतिहास नारी की महत्ता पर आधारित है। भारत में हिन्दू सनातन संस्कृति में स्त्री को देवी के रूप में माना गया है। ऋग्वेद के 30 श्लोक महिलाओं को समर्पित हैं। वह बोले विदेशी आक्रांताओं के कारण हमारे जीवन में कई चीजें नष्ट होना प्रारम्भ हुईं। हम पश्चिम की विलासिता से प्रेरित होकर उसकी तरह भौतिकता से जीवन जीने के आदि हो गए। इसके कारण मातृशक्ति स्तिथि खराब हो गयी, जिसके कारण भारत में स्त्री को देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ उसे भोग की वस्तु समझा जाने लगा। फिर ऐसे ही महिला ने महिला को देखना प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा पुरुषों के साथ स्त्री को भी मर्यादा, सोशल-इंडिविजुअल डिसिप्लिन में रहने के लिए भी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहिए। श्री मुक्तिबोध बोले कि भारत में राम-रावण युद्ध, महाभारत, मेवाड़ सहित अनेक बड़े युद्ध स्त्री के सम्मान में हुए हैं। स्त्री को हीनता बोध से मुक्त होकर अपने अंदर आत्मविश्वास जागृत करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही भारतीय चिंतन में स्त्री की भूमिका को नवीन परिप्रेक्ष्य में नए सिरे से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

स्वाभिमान की रक्षा करना ही महिला का प्रमुख दायित्व : साध्वी रंजना जी
दूसरे सत्र में "महिलाओं की स्थानीय समस्या, स्तिथि एवं सामाधान" विषय पर चर्चा हुई। इसमें मुख्य वक्ता साध्वी रंजना ने महिलाओं को अपने स्वाभिमान की रक्षा को उनका प्रमुख दायित्व बताया। उन्होंने अनुसुइया, गार्गी, रानी लक्ष्मीबाई, जीजाबाई के चरित्र पर बात करते हुए स्त्री के त्याग को समझाया। उन्होंने महिलाओं को शक्ति स्वरूपा बताते हुए महिला पुरुष को एक-दूसरे के पूरक बताया। उन्होंने ऊंच-नीच से परे होकर एकता से कार्य करने की बात पर बल दिया। उन्होंने बेटियों से संस्कृति, संस्कार ध्यान में रखकर वेद पुराण, उपनिषदों से सीखकर संस्कारवान बनने की बात कही। वहीं एडीजे सुषमा सिंह ने प्राचीन भारत की संस्कृति में समाज में नारी बराबरी पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने महिलाओं से स्वास्थ्य रहने, आर्थिक सम्पन्न बनने, अपडेट रहकर हिंसा का विरोध करने की बात पर जोर दिया। इस मौके पर डॉ शशि ठाकुर, कुसुम सिंह आदि उपस्थित थीं। तीसरे सत्र में देश के विकास में स्त्रियों की भूमिका पर केन्द्रित रहा। महिला समन्वय की प्रान्त संयोजिक शशि ठाकुर ने महिलाओं को प्रेरित करने वाली कथा पर बोलते हुए आत्मज्ञान के बारे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने एक-दूसरे से सामंजस्य कर समरसरता के भाव के साथ कार्य करने की बात पर जोर दिया।

भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति और प्रदर्शनियों ने किया आकर्षित
सुप्रिसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. लता मुंशी एवं उनके समूह की प्रस्तुति देखकर ने कार्यक्रम में अलग ही रंग डाल दिया। उनके समूह द्वारा दुर्गाशप्तसति की प्रस्तुति ने लोगों में ऊर्जा भर दी थी। मातृशक्ति ने तालियाँ बजाकर उनका सम्मान एवं उत्साहवर्धन किया। वहीं कार्यक्रम में भारत की वीरांगनाओं को समर्पित प्रदर्शनी ने भी सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसे देखने के लिए सुबह से ही मातृशक्ति की भीड़ देखने को मिली। कार्यक्रम में पार्किंग, अल्पाहार, स्टाल, मंच इत्यादि सहित सम्मेलन की सभी व्यवस्थाएं मातृशक्ति द्वारा ही संभाली गयीं।


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