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भारत में पहली बार भोपाल में लगी Coroventis CoroFlow हृदय जांच प्रणाली

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 200

अब ‘इनविज़िबल’ माइक्रोवैस्कुलर बीमारी की होगी सटीक पहचान

20 नवम्बर 2025। भारत ने हृदय रोग निदान में एक बड़ी तकनीकी बढ़त हासिल की है। वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. पंकज मनोरिया ने बताया कि उनके अस्पताल में Coroventis CoroFlow Cardiovascular System स्थापित किया गया है। यह देश का पहला documented इंस्टॉलेशन है और इसके साथ पहला documented केस भी पूरा किया गया।

तकनीक की अहमियत पर डॉ. मनोरिया ने कहा, “एंजियोग्राफी में सिर्फ बड़ी धमनियों का ब्लॉकेज पकड़ में आता है, लेकिन वही धमनियां आगे जाकर बहुत पतली माइक्रोवैसल्स में बदल जाती हैं, जिन्हें एंजियोग्राफी नहीं देख पाती। ऐसे में कई मरीजों को बार-बार एंजाइना होता है लेकिन रिपोर्ट सामान्य आती है। पहले यह तय करना भी मुश्किल था कि दर्द हार्ट से है या किसी और वजह से।”

उन्होंने बताया कि CoroFlow एक एडवांस्ड इनवेज़िव जांच है जिसमें एंजियोग्राफी के दौरान एक विशेष वायर से माइक्रोवैसल्स का फ्लो और रेजिस्टेंस मापा जाता है। “अगर माइक्रोवैस्कुलर फ्लो धीमा है तो हम माइक्रोवैस्कुलर डिसफंक्शन का बिल्कुल सटीक निदान कर पाते हैं। यह तकनीक एंजियोग्राफी की सीमाओं को पूरा करती है और वास्तविक कोरोनरी फ्लो को मापकर मरीजों को स्पष्ट जवाब देती है। यह उन मरीजों के लिए खास तौर पर उपयोगी है जिनकी समस्या एंजियो या एंजियोप्लास्टी के बाद भी समझ नहीं आती थी।”

डॉक्टरों को कितनी ट्रेनिंग चाहिए?
इस पर डॉ. मनोरिया ने स्पष्ट कहा कि इस तकनीक का उपयोग करने के लिए किसी विशेष ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती। “जो कार्डियोलॉजिस्ट नियमित इनवेज़िव प्रोसिजर करते हैं, वे इसे आसानी से अपना सकते हैं।”

उन्होंने यह भी बताया कि CoroFlow के क्लिनिकल आउटकम्स से जुड़े इंटरनेशनल डेटा के साथ-साथ भारतीय मरीजों का डेटा भी उपलब्ध है, जिससे इसका भरोसा और बढ़ जाता है।

इलाज कितना मुश्किल और महंगा?
डॉ. मनोरिया ने यह भी कहा कि “जांच के बाद इसका इलाज सस्ता है और आमतौर पर मरीजों को सिर्फ पंद्रह दिन से दो महीने तक दवाएं लेनी पड़ती हैं।” यानी न सिर्फ निदान साफ होता है, बल्कि उपचार भी लंबा, जटिल या महंगा नहीं बनता।

लंदन स्थित इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संदीप कालरा ने माइक्रोवैस्कुलर एंजाइना को दुनिया की सबसे कम पहचानी जाने वाली हृदय समस्याओं में से एक बताया। उन्होंने कहा, “मरीज सालों तक गलत निदान के कारण परेशान रहते हैं। CoroFlow विज्ञान-आधारित और मापनीय डेटा देता है, जिससे समस्या का सटीक निर्धारण संभव होता है। इस इंस्टॉलेशन के साथ भोपाल अब उन चुनिंदा वैश्विक केंद्रों में शामिल है जहाँ यह विश्व-स्तरीय तकनीक उपलब्ध है। यह भारतीय कार्डियोलॉजी के लिए एक बड़ा कदम है।”

CoroFlow सिस्टम FFR, CFR, IMR और माइक्रोवैस्कुलर फ्लो जैसे उन्नत पैरामीटर्स मापता है। ये जांचें उन स्थितियों में भी डायग्नॉस्टिक स्पष्टता देती हैं जहाँ पारंपरिक तकनीकें जवाब नहीं दे पातीं।

इस स्थापना के साथ भोपाल अत्याधुनिक cardiac diagnostics में देश का अग्रणी बनकर उभरा है। यह कदम भारत में हृदय रोग निदान के नए मानक तय कर सकता है।

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