
डोंबिवली की बेटी, जिसने आसमान को छूने का सपना देखा था, वह अब चुपचाप उसमें खो गई है।
14 जून 2025। 26 वर्षीय रोशनी सोनाघरे, एयर इंडिया की अहमदाबाद से लंदन जा रही उड़ान AI-171 में केबिन क्रू मेंबर के रूप में सवार थीं, जब यह विमान टेकऑफ के तुरंत बाद हादसे का शिकार हो गया। इस दुर्घटना ने न सिर्फ एक युवा होनहार जीवन को निगल लिया, बल्कि डोंबिवली शहर के दिल को भी झकझोर कर रख दिया।
‘वह हमारे घर की रोशनी थी’
जैसे ही हादसे की खबर आई, रोशनी की मां शोभा सोनाघरे रोने लगीं और उन्हें चुप कराना नामुमकिन हो गया। घर में मातम पसरा हुआ है, और रिश्तेदार सांत्वना देने की कोशिश में हैं। पिता राजेंद्र सोनाघरे और बड़ा भाई विघ्नेश तुरंत अहमदाबाद पहुंच गए हैं। एक रोते हुए रिश्तेदार ने कहा, “सब कुछ उसके इर्द-गिर्द घूमता था। हम अब भी किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे हैं।”
एक छोटे शहर से अंतरराष्ट्रीय उड़ान तक
रत्नागिरी के मंडनगढ़ से डोंबिवली तक का सफर तय करने वाली रोशनी ने साधारण परिवेश से उड़ान भरते हुए एयर इंडिया तक की यात्रा की। उन्होंने स्पाइसजेट में करियर की शुरुआत की, जहां वह अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में सेवा देती थीं। उड़ान उनके लिए सिर्फ एक नौकरी नहीं थी – वह उनका सपना था। एक पारिवारिक मित्र बताते हैं, “वह स्कूली दिनों से ही यूनिफॉर्म पहनकर आसमान में उड़ने की कल्पना करती थी।”
सोशल मीडिया पर भी वह काफी सक्रिय थीं। इंस्टाग्राम पर उनके 54,000 से ज्यादा फॉलोअर्स थे, जहां वह अपने प्रोफेशनल और पर्सनल जीवन की झलकियां साझा करती थीं। हादसे के बाद से उनके प्रोफाइल पर शोक संदेशों की बाढ़ आ गई है।
अधूरी रह गई एक दुल्हन की कहानी
परिवार ने कुछ ही महीने पहले उनकी सगाई की तैयारी शुरू की थी। नवंबर 2025 में सगाई और फरवरी 2026 में शादी तय थी। उनके मंगेतर, जो मर्चेंट नेवी में अधिकारी हैं, खबर मिलते ही डोंबिवली पहुंच गए। उनके चाचा प्रवीण सुखदरे ने बताया, “दोनों एक आदर्श जोड़ी थे। यह हादसा हमारे सपनों पर जैसे बिजली बनकर टूटा है।”
परिवार की रीढ़ और समाज का गौरव
रोशनी न सिर्फ अपने परिवार की आर्थिक मदद करती थीं, बल्कि उनके माता-पिता और भाई की देखभाल में भी हमेशा आगे रहती थीं। वह विनम्र, हंसमुख और सभी की चहेती थीं। एक पड़ोसी कहते हैं, “उसके चेहरे की मुस्कान और नम्रता सबको मोह लेती थी। वह सिर्फ एक प्रोफेशनल नहीं, एक प्रेरणा थी।”
इतिहास ने फिर से दोहराया खुद को
डोंबिवली पहले भी ऐसा ही दर्द सह चुका है। 22 मई 2010 को मैंगलोर हवाई दुर्घटना में तुकाराम नगर की तेजल कामुलकर नामक केबिन क्रू सदस्य की जान गई थी। अब, 15 साल बाद, रोशनी की कहानी उसी पीड़ा को फिर से जगा रही है। एक सेवानिवृत्त शिक्षक, जो दोनों परिवारों को जानते हैं, ने कहा, “ये दोनों लड़कियां डोंबिवली की उम्मीदें थीं – उनके चले जाने का दर्द शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।”
पूरे शहर की एक सांस थमी हुई है
इस समय पूरा डोंबिवली शोक में डूबा है। पड़ोसी, दोस्त, सहकर्मी – सब उनकी यादों में डूबे हैं। डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट का इंतज़ार है, लेकिन लोगों की प्रार्थनाएं थमी नहीं हैं।