
3 फरवरी 2025। भोपाल में साइबर अपराध की जांच करने वाले पुलिसकर्मी भी अब साइबर ठगों का शिकार हो रहे हैं। ये ठग पुलिसकर्मियों को भारी मुनाफे या लॉटरी का लालच देकर मनोवैज्ञानिक रूप से अपने जाल में फंसा रहे हैं।
पुलिस भी नहीं सुरक्षित:
जो पुलिसकर्मी साइबर अपराधों की तहकीकात करते हैं, वे भी इन ठगों के शातिर तरीकों से नहीं बच पा रहे हैं। ठगों की हर चाल से वाकिफ होने के बावजूद, पुलिसकर्मी उनके झांसे में आकर अपनी मेहनत की कमाई से हाथ धो रहे हैं।
कैसे फंसाते हैं ठग?
ये ठग पुलिसकर्मियों को भारी मुनाफा या लॉटरी का लालच देते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं। साइबर सेल में दिसंबर के अंत और जनवरी में शहर के दो थानों में तैनात पुलिसकर्मियों से ठगी की शिकायतें दर्ज हुई हैं।
"तू डाल-डाल, मैं पात-पात":
साइबर ठगों और पुलिस के बीच का यह संघर्ष "तू डाल-डाल, मैं पात-पात" वाली कहावत को चरितार्थ करता नजर आ रहा है।
नई तकनीक, नए तरीके:
एक तरफ पुलिस साइबर ठगों को पकड़ने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करती है और लोगों को साइबर ठगी से बचने के लिए जागरूक करती है, तो दूसरी तरफ साइबर ठग भी नई तकनीकों से हर पल लैस रहते हैं। वे लोगों के भय, लालच और मुनाफे की चाह का इस्तेमाल करते हुए उनके मनोविज्ञान से बखूबी खेलते हैं।
अलग-अलग तरीके, एक ही मकसद:
ये ठग कभी किसी को ईडी, सीबीआई या नारकोटिक्स ब्यूरो के नाम पर धमकाते हैं, तो कभी किसी को लॉटरी, सट्टे से शीघ्र कमाई का लालच देते हैं। किसी को शेयर बाजार में निवेश के नाम पर फर्जी वेबसाइटों के माध्यम से उकसाते हैं, तो कभी डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लोगों को आतंकित करते हुए उनकी जमा पूंजी को मिनटों में हड़प लेते हैं।
कौन बचाएगा?
यह आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों पर साइबर ठगों से बचाने की जिम्मेदारी है, जब वे ही लोग ठगी का शिकार होने लगें, तो आम जनता का क्या होगा?