5 नवंबर 2025। मध्य प्रदेश में ई-एफआईआर शुरू हुए चार साल हो चुके हैं, लेकिन लोग अब भी डिजिटल शिकायत दर्ज करने से दूर हैं। एमपी ई-कॉप पोर्टल और मोबाइल ऐप पर ई-एफआईआर की संख्या बेहद कम है। राजधानी भोपाल में सितंबर 2025 तक सिर्फ करीब 120 ई-एफआईआर दर्ज हुईं। यह साफ संकेत है कि नागरिक अभी भी थाने जाकर शिकायत करना ज्यादा आसान और भरोसेमंद मानते हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत? तकनीकी खामियां, जटिल प्रक्रिया और जागरूकता की कमी।
कई लोग पोर्टल समझ नहीं पाते, बार-बार ओटीपी फेल हो जाता है या दस्तावेज़ अपलोड नहीं होते। ऊपर से अगर जानकारी में थोड़ी भी गलती हो जाए, तो शिकायत खारिज। इससे आम लोग दोबारा कोशिश करने से कतराते हैं।
सीमा भी तय:
ई-एफआईआर सिर्फ उन्हीं मामलों में हो सकती है जहां आरोपी अज्ञात हो। जैसे:
3 लाख तक की चोरी
वाहन चोरी
5 लाख तक की ऑनलाइन या साइबर धोखाधड़ी
महिलाओं और बच्चों से जुड़े कुछ मामलों में
इसके बाद शिकायतकर्ता को तीन दिनों के भीतर थाने जाकर पुष्टि करनी पड़ती है, वरना मामला खुद-ब-खुद बंद। यह नियम भी बहुत से लोगों को पता नहीं, और फिर केस अधूरा रह जाता है।
लोग क्यों नहीं कर पा रहे भरोसा
कम डिजिटल जानकारी वाले नागरिक पोर्टल चलाना मुश्किल पाते हैं
सर्वर फेल, ओटीपी समस्या जैसी तकनीकी दिक्कतें
ऑनलाइन शिकायत पर पुलिस कार्रवाई में देरी
लोगों का शक कि ऑनलाइन शिकायत को उतनी गंभीरता नहीं मिलती
गंभीर अपराध ई-एफआईआर दायरे से बाहर
पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्रा का कहना है कि जागरूकता अभियान पहले भी चलाए गए हैं और आगे भी जारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि मानकों के अनुरूप मामलों में ई-एफआईआर पूरी तरह संभव है, बस लोगों को प्रक्रिया समझनी होगी।
डिजिटल पुलिसिंग अच्छी पहल है, लेकिन सिस्टम तब ही चलेगा जब नागरिकों के लिए यह आसान, भरोसेमंद और तेज होगा। वरना लोग थाने की लाइन में लगना ही बेहतर समझेंगे।














