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बलूचिस्तान क्यों है भारत के लिए रणनीतिक रूप से अहम? जानिए इतिहास, विवाद और वर्तमान संदर्भ

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Place: नई दिल्ली                                                👤By: prativad                                                                Views: 889

25 मई 2025। 📍 नई दिल्ली | विशेष विश्लेषण | प्रतिवाद डेस्क

बलूचिस्तान — पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे अधिक संसाधन संपन्न प्रांत, एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भौगोलिक दृष्टि से रणनीतिक, ऐतिहासिक रूप से विद्रोही और राजनीतिक रूप से संवेदनशील यह क्षेत्र आज भी भारत की कूटनीतिक रणनीतियों में अप्रत्यक्ष लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

बलूचिस्तान भारत के लिए सिर्फ एक भौगोलिक विषय नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध एक रणनीतिक सौदेबाजी की चिप (bargaining chip) के रूप में उभरा है।

🔹 बलूचिस्तान का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत से संभावित जुड़ाव की कहानी
1947 में भारत-पाक विभाजन के समय बलूचिस्तान एक एकीकृत प्रांत नहीं था, बल्कि इसमें चार स्वायत्त रियासतें शामिल थीं — खारन, मकरान, लासबेला और कलात। इन सभी रियासतों में सबसे प्रभावशाली थी खान ऑफ कलात की रियासत, जो खुद को स्वतंत्र घोषित करना चाहती थी। खान ऑफ कलात ने 1947 में पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार किया और कथित रूप से भारत के तत्कालीन गृह मामलों के सचिव वी. पी. मेनन के साथ बातचीत की थी।

ऐसी अटकलें थीं कि कलात भारत में विलय कर सकता है, लेकिन इससे पहले कि यह किसी निष्कर्ष तक पहुंचता, 1948 में पाकिस्तान की सेना ने बलपूर्वक कलात और अन्य रियासतों को अपने में मिला लिया। यह अधिग्रहण आज भी बलूच राष्ट्रवादियों के लिए एक अवैध सैन्य दखल का प्रतीक है।

🔸 स्वायत्तता से दमन तक: बलूच असंतोष का इतिहास
1948 से 1954 के बीच बलूचिस्तान को सीमित स्वायत्तता दी गई थी, लेकिन जल्द ही पाकिस्तान के अंदर राजनीतिक समीकरण बदलने लगे। बंगाल (पूर्वी पाकिस्तान) में राजनीतिक शक्ति के बढ़ते दबाव के चलते पश्चिम पाकिस्तान को संतुलित करने के लिए 1954 में बलूचिस्तान, पंजाब, सिंध और NWFP (अब खैबर पख्तूनख्वा) को मिलाकर "वन यूनिट" प्रणाली लागू की गई।

इस कदम से बलूच जनजातियों की पहचान और राजनीतिक स्वायत्तता लगभग समाप्त हो गई, जिससे विद्रोह और आक्रोश पनपने लगा। 1973 में एक बड़ा बलूच विद्रोह हुआ जिसे पाकिस्तान की सेना ने भारी बल प्रयोग से दबाया। इसके बाद 2005 में शुरू हुआ बलूच आंदोलन आज तक जारी है और इसे 21वीं सदी का सबसे लंबा चलने वाला पाकिस्तानी आंतरिक संघर्ष माना जाता है।

🔹 क्यों है भारत के लिए बलूचिस्तान कूटनीतिक रूप से अहम?
भारत लंबे समय से पाकिस्तान पर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाता रहा है। कूटनीतिक हलकों में यह मान्यता बन चुकी है कि भारत को बलूचिस्तान मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए।

हालांकि भारत सरकार ने कभी बलूच अलगाववादियों को खुलकर समर्थन नहीं दिया, लेकिन 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से बलूचिस्तान का उल्लेख करना अपने आप में एक ऐतिहासिक संदेश था।

भारत यह मानता है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि रणनीतिक मनोवैज्ञानिक दबाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है। और बलूचिस्तान, पाकिस्तान की उस कमजोर नस पर चोट करने का माध्यम बनता है, जिससे उसके सैन्य प्रतिष्ठान को असहज किया जा सकता है।

🔸 भारत की रणनीति: “बिना गोली चलाए प्रभाव पैदा करना”
विश्लेषकों का मानना है कि भारत पाकिस्तान के साथ प्रत्यक्ष युद्ध में उलझने के बजाय ऐसी रणनीति पर काम करता है, जिसमें दबाव, प्रतिकार और संकेतों की भूमिका होती है। बलूचिस्तान को लेकर भारत की स्थिति कुछ वैसी ही है जैसे चीन के खिलाफ भारत अरुणाचल या ताइवान का मुद्दा उठाता है—यानी प्रतिशोध नहीं, संतुलन की रणनीति।

भारत बलूच आंदोलन को खुला समर्थन न देकर भी पाकिस्तान को यह संदेश देने में सफल होता है कि अगर वह भारत की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करेगा, तो उसे अपने सबसे बड़े प्रांत की एकता पर खतरा महसूस हो सकता है।

🔹 अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचिस्तान की गूंज
बलूचिस्तान मुद्दा अब केवल भारत-पाक के द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है। मानवाधिकार संगठनों और कई यूरोपीय देशों में बलूचिस्तान में हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघनों पर चिंता जताई गई है। बलूच कार्यकर्ताओं ने जिनेवा, लंदन और वॉशिंगटन डीसी जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन किए हैं, जहां वे पाकिस्तान की सेना पर दमन, जबरन गायब करने और जनसंहार का आरोप लगाते हैं।

✅ भारत की चुप्पी भी एक रणनीति है
बलूचिस्तान पर भारत की भूमिका अक्सर "रहस्यमयी" कही जाती है। खुला समर्थन न देना, लेकिन इसे कूटनीतिक मंचों पर उठाना — यही भारत की रणनीतिक सूझबूझ का संकेत है। पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि बलूचिस्तान उसके लिए एक आंतरिक ज्वालामुखी है। भारत उसे फूटने नहीं दे रहा, लेकिन बुझने भी नहीं दे रहा।

बलूचिस्तान को लेकर भारत की नीति यह है कि जिस दिन पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंक का खेल रोकेगा, उसी दिन बलूचिस्तान पर चल रही यह ‘नरम चेतावनी’ भी शांत हो सकती है। लेकिन तब तक, यह मुद्दा पाकिस्तान के लिए एक स्थायी दवाब बना रहेगा।

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