4 दिसंबर 2025। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का 4 दिसंबर का भारत दौरा वैसे शुरू नहीं हो रहा, जैसे आम शिखर सम्मेलन होते हैं। इस बार बैकग्राउंड में यूक्रेन युद्ध है, अमेरिका की नई सज़ा-नीति है, 50 प्रतिशत टैरिफ हैं, और दुनिया की सप्लाई चेन में बढ़ती बेचैनी है।
दूसरे शब्दों में कहें तो—ये दौरा सिर्फ़ वार्म हैंडशेक वाला इवेंट नहीं है, यह भारत-रूस रिश्तों की अगली दिशा तय करेगा।
इस तस्वीर को चार स्पष्ट हिस्सों में पढ़ना पड़ेगा: डिफेंस, स्पेस, इकोनॉमिक रिश्ते और नई कूटनीतिक हकीकत।
1) डिफेंस: भारत-रूस की सबसे भारी फाइल, और अभी भी सबसे ज़्यादा संवेदनशील
इस दौरे का सबसे हाई-स्टेक हिस्सा है सुखोई Su-57 का जॉइंट प्रोडक्शन।
भारत चाह रहा है कि उसकी मिलिट्री क्षमता अगली पीढ़ी की टेक्नोलॉजी के साथ अपग्रेड हो, और रूस अपने पारंपरिक ग्राहक को फिर से सेंट्रल स्टेज पर लाना चाहता है।
क्या नया है?
रूसी संसद के निचले सदन ने अभी-अभी एक अहम एग्रीमेंट मंज़ूर किया है, जिसके तहत भारत और रूस एक-दूसरे की जमीन पर मिलिट्री यूनिट्स, ड्रिल्स और ह्यूमैनिटेरियन मिशन तैनात कर सकेंगे। यह सामान्य रक्षा साझेदारी से दो कदम आगे है।
नई दिल्ली की ‘मेक इन इंडिया’ पॉलिसी भी रूस को नए अवसर देती है। दुबई एयरशो में रूस की हथियार निर्यातक कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने भारतीय मीडिया को एक विस्तृत डेमो तक दे दिया, ताकि यह दिखाए कि वह देसी पार्टनर्स के साथ कितनी करीबी से काम कर सकती है।
कुल मिलाकर, पुतिन के बैग में डिफेंस वाली फाइल सबसे ऊपर है।
2) स्पेस: साझेदारी का सबसे साफ और भरोसेमंद पिलर
भारत और रूस 1960 के दशक से स्पेस पार्टनर रहे हैं। 1984 में राकेश शर्मा को सोवियत सोयुज से भेजना इसका सबसे प्रतीकात्मक क्षण रहा।
अब चर्चा है:
नए स्पेस इंजन
रॉकेट फ्यूल
पायलटेड स्पेसफ्लाइट
नेशनल ऑर्बिटल स्टेशन
और गगनयान मिशन में रूस की तकनीकी भूमिका
रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस इस दौरे को स्पेस सेक्टर में “रीसेट प्लस अपग्रेड” की तरह देख रही है।
3) अर्थव्यवस्था: डी-डॉलराइजिंग, UPI-Mir लिंक और 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य
पुतिन ने दौरे से ठीक पहले साफ कहा—भारत के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाना हमारी प्राथमिकता है।
तीन अहम बातें:
Mir + RuPay की आपसी पहचान
SBP (रूस का फास्टर पेमेंट सिस्टम) और UPI की कनेक्टिविटी
90 प्रतिशत ट्रेड अब रुपये-रूबल में
ये सिर्फ फाइनेंशियल एक्सपेरिमेंट नहीं है, बल्कि वैश्विक डी-डॉलराइजिंग की टेस्ट-लैब है।
अगर यह मॉडल टिक गया तो दूसरे देशों के लिए भी एक फॉर्मूला बन सकता है।
भारत और रूस का लक्ष्य है कि 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंचे।
अभी तस्वीर असंतुलित है:
भारत का रूस को निर्यात लगभग 5 अरब डॉलर
रूस का भारत को निर्यात लगभग 64 अरब डॉलर
और यह अंतर इतना बड़ा है कि पुतिन खुद इस पर अपनी सरकार को उपाय ढूंढने का आदेश दे चुके हैं।
4) कूटनीति: ‘पुतिन-मोदी केमिस्ट्री’ और वैश्विक दबावों में बैलेंसिंग एक्ट
यूक्रेन संघर्ष के बाद से पुतिन का यह पहला भारत दौरा है, और यह बताता है कि मॉस्को नई दिल्ली को प्राथमिकता देता है।
दोनों नेता सितंबर में SCO समिट में मिले थे, और अब यह विज़िट सालाना उच्चस्तरीय समिट की वापसी का संकेत देता है।
भारत ने हाल ही में कज़ान और एकातेरिनबर्ग में दो नए कॉन्सुलेट भी खोले हैं—यह मामूली क़दम नहीं है, यह भू-राजनीतिक संदेश है कि रिश्ते अब ज्यादा एक्टिव ट्रैक पर जाएंगे।
मॉस्को भारत के “संतुलित रुख” की खुलकर तारीफ कर रहा है, खासकर यूक्रेन पर।
ये लाइन वाशिंगटन को भी दिखती है और ब्रुसेल्स को भी।
और सबसे बड़ा सवाल: यह दौरा भारत के लिए क्या बदल सकता है?
भारत को अमेरिका के नए टैरिफ झटके का जवाब ढूंढना ही होगा।
रूस को भारतीय बाजार चाहिए, वरना उसका एशिया वाला आर्थिक पिवट अधूरा रह जाएगा।
दोनों को एक ऐसे दौर में दोस्ती को पुनर्परिभाषित करना है, जहां हर कदम ग्लोबल पॉलिटिक्स में तिनके की तरह तौला जाता है।
भारत ये सब ऐसे समय में कर रहा है, जब उसके सामने चीन, अमेरिका, EU और रूस—सभी के साथ दबाव वाले रिश्ते हैं।
और यही वजह है कि पुतिन का यह दौरा सिर्फ विजिट नहीं, बल्कि रणनीतिक परीक्षा है।
पुतिन-मोदी समिट आज की दुनिया के सबसे अस्थिर समय में हो रही है।
अगर दोनों देश अपने एजेंडों को प्रैक्टिकल रोडमैप में बदल पाए, तो भारत-रूस संबंध अगले दशक में एक नए मॉडल की तरह उभर सकते हैं—
एक ऐसा मॉडल जहां रक्षा, स्पेस और अर्थव्यवस्था तीनों एक ही धुरी पर घूमते हों:
लंबी अवधि के भरोसे पर, न कि बदलते हेडलाइंस पर।














