
23 अक्टूबर 2025। भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपये को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अपने मुक्त व्यापार साझेदार देशों के साथ रुपये में लेनदेन निपटान को आसान बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इसका उद्देश्य लंबी अवधि में डॉलर पर निर्भरता कम कर रुपये को एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करना है।
सूत्रों के मुताबिक, शुरुआती चरण में आरबीआई ऐसी प्रत्यक्ष विनिमय दरें तय करने पर काम कर रहा है जो अमेरिकी डॉलर जैसी किसी तीसरी मुद्रा पर निर्भर न हों। वर्तमान में अधिकांश देशों की मुद्राएँ डॉलर के संदर्भ में अपनी दरें तय करती हैं।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई मॉरीशस सहित कुछ देशों के लिए सीधे संदर्भ दरें विकसित करने की प्रक्रिया में है। इसके अलावा, इस महीने की शुरुआत में यूएई दिरहम और इंडोनेशियाई रुपिया के लिए भी संदर्भ दरें तय करने की योजना की घोषणा की गई थी।
भारत अब तक यूके, ऑस्ट्रेलिया और यूएई सहित दर्जनभर से अधिक देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते कर चुका है। साथ ही, अमेरिका सहित कई अन्य देशों के साथ भी इसी तरह के समझौतों पर बातचीत जारी है।
जानकारी के अनुसार, भारत इन समझौतों में रुपये में इनवॉइसिंग (बिलिंग) को बढ़ावा देने की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है। उदाहरण के तौर पर, कुछ भारतीय रिफाइनर अब रूसी तेल के भुगतान के लिए डॉलर की बजाय चीनी युआन का उपयोग कर रहे हैं।
हाल ही में आरबीआई ने बैंकों को पड़ोसी देशों के व्यवसायों को रुपये में ऋण देने की अनुमति देने और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के लिए आधिकारिक संदर्भ दरें तय करने का प्रस्ताव दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंध और अमेरिकी मौद्रिक नीतियों ने कई देशों को डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए प्रेरित किया है। अब कई देश आपसी व्यापार और निवेश लेनदेन अपनी स्थानीय मुद्राओं में करने पर सहमत हो रहे हैं।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, “अधिकारियों का ध्यान डॉलर को चुनौती देने पर नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ व्यापार और पूंजी लेनदेन में रुपये की उपयोगिता बढ़ाने पर है। यही इसके अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में असली कदम है।”