
14 सितंबर 2025। जनरेटिव एआई के उभार ने जिस कल्पना को विज्ञान-कथा की दुनिया से वास्तविकता में ला दिया है, वह अब मज़ाक नहीं रही। जो भविष्य कभी रोबोटिक बटलरों और मानव रचनात्मकता की आज़ादी का सपना था, आज वह उलटकर इस वास्तविकता में बदल रहा है कि मशीनें लेख, चित्र और कोड बना रही हैं, जबकि इंसान फ़ास्ट फ़ूड की दुकानों और गोदामों में कम मज़दूरी वाली नौकरियाँ कर रहे हैं।
संकट और वैश्विक जोखिमों के विशेषज्ञ डॉ. मैथ्यू मावाक का कहना है कि यह बदलाव अब हास्यास्पद कम और भयावह अधिक हो चुका है। उनका मानना है कि "सुरक्षित माने जाने वाले" ज्ञान-आधारित पेशे सबसे पहले प्रभावित होंगे।
◼️ "ज्ञान वर्ग" सबसे पहले ख़तरे में
डॉ. मावाक बताते हैं कि प्लंबर, क्लीनर या मेकेनिक जैसी नौकरियाँ अभी कुछ समय तक बची रह सकती हैं क्योंकि मानवरूपी रोबोट अभी तकनीकी और लागत के लिहाज से परिपक्व नहीं हैं। लेकिन वकील, प्रोफ़ेसर, पत्रकार या कॉपी एडिटर जैसे पेशे पहले से ही एआई से सीधे प्रभावित हो रहे हैं।
कानून: जब एआई सेकंडों में हलफ़नामे और याचिकाएँ तैयार कर सकता है, तो महँगे वकील रखने की ज़रूरत क्यों होगी?
शिक्षा: चैटजीपीटी जैसे एलएलएम कॉफ़ी ब्रेक के दौरान ज्ञान के पहाड़ों को संश्लेषित कर सकते हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय और लाइब्रेरियों की प्रासंगिकता पर सवाल उठता है।
मीडिया: न्यूज़रूम, एंकरिंग और संपादन पहले से ही तकनीकी रूप से एआई द्वारा किए जा सकते हैं। एक सीमा यह है कि एआई अभी “स्क्रिप्टेड सवालों” के बिना वास्तविक पत्रकारिता नहीं कर सकता।
◼️ डिजिटल पलायनवाद और नए व्यसन
अब जब समस्या का दायरा और स्पष्ट हो गया है, तो सवाल है कि चीज़ें बेहतर होंगी या बदतर? डॉ. मावाक मानते हैं कि अकेलापन बढ़ेगा और इसके साथ डिजिटल पलायनवाद व नए तरह के व्यसन भी।
आज ही “एआई गर्लफ्रेंड” सेवाएँ मौजूद हैं, कल को यह मुख्यधारा बन सकती हैं—जैसे सेक्स टॉयज़ और वीआर पोर्नोग्राफ़ी। लोग एआई-निर्मित पात्रों के साथ यौन अंतरंगता का अनुभव करेंगे, काल्पनिक ग्रहों की सैर करेंगे या ऐसे सिमुलेशन में रहेंगे जहाँ हिंसा, वासनाएँ और आदिम इच्छाएँ केंद्र में हों।
◼️ मावाक चेतावनी देते हैं:
क्या विक्टोरियन लंदन में “जैक द रिपर” का अनुभव करना भविष्य की डार्कनेट अर्थव्यवस्था बनेगा?
क्या इमर्सिव तकनीकें यौन विकृतियों और हिंसा को सामान्य बना देंगी?
क्या डिजिटल व्यसनों का इलाज नए तरह के थेरेपी और शुद्धिकरण कार्यक्रमों से करना होगा?
उनका समाधान कड़ा है: “सबसे अच्छा इलाज एक निगरानी वाली कैंपिंग यात्रा है, जहाँ आधुनिक उपकरणों की अनुमति न हो।”
◼️ "झुंड" बनाम "दोहनकर्ता"
मावाक इंसानों को दो वर्गों में बाँटते हैं:
झुंड (Herd) – बहुसंख्यक लोग, जो सुरक्षा की तलाश में आलोचनात्मक सोच छोड़ चुके हैं।
दोहनकर्ता या हार्नेसर (Harnessers) – वे अल्पसंख्यक जो असंभव परिस्थितियों को अवसर में बदल सकते हैं और धारा के विपरीत चलने का साहस रखते हैं।
झुंड के लिए भविष्य डरावना है, क्योंकि उनके सुरक्षित ज़ोन एआई द्वारा नष्ट हो रहे हैं। वहीं हार्नेसर, जो आलोचनात्मक सोच और अनुकूलन की क्षमता रखते हैं, एआई सर्वनाश से बच निकल सकते हैं।
◼️ मानवता की इच्छाशक्ति की परीक्षा
मावाक के अनुसार, यह केवल नौकरियों या तकनीक का संकट नहीं, बल्कि मानवता की जीवित रहने की इच्छाशक्ति की परीक्षा है।
उनका दावा है कि वैश्विक नेतृत्व वर्ग (Globalist Elite) पहले से यह समझ चुका है। यही कारण है कि “ग्रेट रीसेट” और “न्यू वर्ल्ड ऑर्डर” जैसी अवधारणाओं पर ज़ोर दिया जा रहा है। मावाक कहते हैं कि भविष्य की कल्पना इस तरह की जा रही है:
बहुसंख्यक इंसानों को डिजिटल रूप से नियंत्रित “गुलाग” में रखा जाएगा।
वहाँ उन्हें मुफ़्त इमर्सिव तकनीकें और मनोविकृति दवाएँ दी जाएँगी ताकि वे शांत और निष्क्रिय बने रहें।
युवाल नोआ हरारी जैसे भविष्यवादी पहले ही ऐसे “बेकार खाने वालों” के भविष्य का संकेत दे चुके हैं।
◼️ एआई सबसे पहले ज्ञान-आधारित नौकरियों पर प्रहार कर रहा है।
अगला संकट होगा डिजिटल व्यसन, अकेलापन और पलायनवाद।
झुंड मानसिकता वाले लोग सबसे अधिक असुरक्षित हैं, जबकि हार्नेसर भविष्य गढ़ सकते हैं।
यह सिर्फ़ तकनीक का नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के अस्तित्व का संकट है।
सवाल वही रहता है: क्या हम झुंड की तरह एक डिजिटल गुलाग में समा जाएँगे, या हार्नेसर बनकर तूफ़ान की हवा को अपनी पालों में भरेंगे?