25 नवंबर 2025। नए कोर्ट डॉक्यूमेंट्स में दावा किया गया है कि मेटा ने उन इन-हाउस स्टडीज़ को छुपाया, जिनसे पता चलता था कि फेसबुक का इस्तेमाल डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है।
एक अनएडिटेड फाइलिंग के मुताबिक, कंपनी को पता था कि उसके प्लेटफॉर्म का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, लेकिन उसने इन नतीजों को सार्वजनिक नहीं किया। यह खुलासे US के कई स्कूल डिस्ट्रिक्ट्स द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ चल रहे हाई-प्रोफाइल केस का हिस्सा हैं। मुकदमे में आरोप है कि सोशल प्लेटफॉर्म्स ने बच्चों और किशोरों में लत और मानसिक नुकसान बढ़ाया।
डॉक्यूमेंट्स में बताया गया है कि 2020 में मेटा ने एक रिसर्च की थी। इसमें कुछ यूजर्स को एक हफ्ते के लिए फेसबुक से दूर रहने को कहा गया और उनकी तुलना उन लोगों से की गई जो प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल जारी रखे हुए थे।
स्टडी के नतीजे मेटा के लिए सुखद नहीं थे। फाइलिंग के मुताबिक, जिन लोगों ने फेसबुक छोड़ दिया था, उन्होंने डिप्रेशन, एंग्जायटी, अकेलापन और सोशल तुलना की भावना में कमी महसूस की। इसके बाद कंपनी ने शोध को आगे बढ़ाने या यूजर्स को चेतावनी देने की बजाय प्रोजेक्ट रोक दिया। कंपनी का कहना था कि प्रतिभागियों का फीडबैक मीडिया नैरेटिव की वजह से बायस्ड हो सकता है।
फाइलिंग में यह भी आरोप है कि फेसबुक के मेंटल हेल्थ पर असर से जुड़े अपने ही नतीजों के बावजूद, मेटा ने अमेरिकी कांग्रेस को गलत जानकारी दी।
पिछले कुछ महीनों में कंपनी पर दबाव बढ़ा है। अक्टूबर में, मेटा ने कहा कि वह टीन अकाउंट्स में नए सुरक्षा फीचर्स जोड़ेगी, ताकि माता-पिता यह नियंत्रित कर सकें कि उनके बच्चे कंपनी के AI चैटबॉट्स से बातचीत करें या नहीं। यह कदम तब आया जब सामने आया कि चैटबॉट नाबालिगों के साथ रोमांटिक या संवेदनशील बातचीत कर सकते हैं।
इस बीच, US फेडरल ट्रेड कमीशन ने भी मेटा पर सोशल नेटवर्किंग में मोनोपॉली बनाए रखने का आरोप लगाया था। हालांकि, पिछले हफ्ते वॉशिंगटन डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एंटीट्रस्ट केस में मेटा के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि FTC यह साबित नहीं कर पाया कि मेटा अभी मोनोपॉली चला रहा है, भले ही कंपनी के पास पहले ऐसी पावर रही हो।














