27 नवंबर 2025। फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उसने अपने प्लेटफॉर्म पर सेक्स ट्रैफिकिंग में शामिल अकाउंट्स को बार-बार नियम तोड़ने के बाद भी सक्रिय रहने दिया। हाल ही में सामने आई कोर्ट फाइलिंग में बताया गया है कि कंपनी की नीति के तहत ऐसे अकाउंट्स को सस्पेंड करने से पहले 16 बार नियम तोड़ने की इजाजत दी जाती थी। यह उन मामलों में भी लागू था जहां वयस्कों द्वारा नाबालिगों से संपर्क जैसी गंभीर गतिविधियां शामिल थीं।
यह फाइलिंग कैलिफ़ोर्निया में दायर उस बड़े मुकदमे का हिस्सा है जिसमें 1,800 से ज्यादा प्लेनटिफ शामिल हैं, जिनमें स्कूल डिस्ट्रिक्ट, बच्चे, माता-पिता और राज्य के अटॉर्नी जनरल भी हैं। मुकदमा दावा करता है कि सोशल मीडिया कंपनियों ने हर हाल में ग्रोथ पर ध्यान दिया और बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर पड़ने वाले खतरों को नजरअंदाज किया। यह केस सिर्फ मेटा ही नहीं, बल्कि गूगल के यूट्यूब, टिकटॉक और स्नैपचैट को भी कटघरे में खड़ा करता है।
इंस्टाग्राम की पूर्व सेफ्टी चीफ वैष्णवी जयकुमार की गवाही भी केस का अहम हिस्सा है। उन्होंने बताया कि मेटा में कथित तौर पर “17-स्ट्राइक पॉलिसी” थी, यानी किसी अकाउंट को सेक्सुअल सॉलिसिटेशन और प्रॉस्टिट्यूशन जैसे मामलों में 16 बार नियम तोड़ने दिया जाता था और 17वीं बार पर जाकर कार्रवाई होती थी। उन्होंने इसे इंडस्ट्री मानकों के मुकाबले बेहद ढीला बताया।
फाइलिंग में कहा गया है कि कंपनी को अपने प्लेटफॉर्म पर चल रही गंभीर समस्याओं का पता था—नाबालिगों से अनजान लोगों का संपर्क, ऐसे फीचर्स जो किशोरों की मानसिक स्थिति और बिगाड़ते थे, और सुसाइड, ईटिंग डिसऑर्डर और बाल यौन शोषण से जुड़े कंटेंट का बार-बार मिलना। फिर भी इन मामलों में कार्रवाई बेहद सीमित रही।
मेटा ने इन आरोपों से इंकार किया है। कंपनी ने USA Today को बताया कि अब वह “वन-स्ट्राइक” पॉलिसी लागू करती है और मानव तस्करी या शोषण से जुड़े अकाउंट्स पर तुरंत कार्रवाई करती है। कंपनी का कहना है कि पुरानी 17-स्ट्राइक प्रणाली को खत्म कर दिया गया है।
US के साथ-साथ मेटा विश्व स्तर पर भी जांच और कानूनी चुनौतियों से घिरी हुई है। इस साल की शुरुआत में उसके AI चैटबॉट पर आरोप लगे कि वे नाबालिगों को अनुचित बातचीत में फंसा सकते हैं। इसके बाद किशोर उपयोगकर्ताओं के लिए नए सेफगार्ड लागू किए गए। दूसरी तरफ, रूस 2022 में मेटा को “चरमपंथी संगठन” घोषित कर चुका है, जबकि यूरोप में उस पर एंटीट्रस्ट, डेटा-प्रोटेक्शन और कॉपीराइट उल्लंघन से जुड़े कई केस दर्ज हैं।
बड़ी टेक कंपनियों पर बढ़ता कानूनी दबाव एक बार फिर साफ कर रहा है कि बच्चों की सुरक्षा और ऑनलाइन शोषण के मामलों में नियमों और जिम्मेदारियों को लेकर बहस अब और तेज होगी।














