
20 अक्टूबर 2025। इंटरनेट पर मौजूद आपकी लगभग हर जानकारी किसी न किसी डाटा ब्रोकर के पास है — और वो इसे किसी को भी बेच सकते हैं। ये कंपनियां आपके नाम, मोबाइल नंबर, पता, रिश्ते, उम्र, गाड़ी की जानकारी से लेकर राजनीतिक झुकाव तक सब कुछ इकट्ठा करती हैं और बेच देती हैं।
DeleteMe के सीईओ रॉब शेवेल के मुताबिक, “डाटा ब्रोकर वे कंपनियां हैं जिनके पास हमारी निजी जानकारी होती है, लेकिन हमारा उनसे कोई रिश्ता नहीं होता।” उनका मकसद सिर्फ एक है — मुनाफा।
अमेरिका में डाटा ब्रोकर पर लगभग कोई सख्त कानून नहीं है। 1970 के पुराने नियम अब बेअसर हैं। न कोई नियंत्रण है, न पारदर्शिता। न पता कि डेटा कहाँ से लिया गया, और न यह कि किसे बेचा गया।
पहले इन कंपनियों के पास किसी व्यक्ति की करीब 250 निजी जानकारियां होती थीं, अब औसतन 700 से ज़्यादा मिलती हैं। ये जानकारी साइबर अपराधियों के लिए सोने की खान साबित होती है।
शेवेल का कहना है, “डाटा ब्रोकर दरअसल हर वक्त लोगों को डॉक्सिंग कर रहे हैं — हमारी निजी जानकारी बेचकर।”
भारत में भी स्थिति चिंताजनक है। देश में तेजी से बढ़ते डिजिटल सर्विस प्लेटफॉर्म्स, ई-कॉमर्स साइट्स और मोबाइल ऐप्स से भारी मात्रा में यूज़र डेटा इकट्ठा हो रहा है। हालांकि भारत में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 लागू किया गया है, लेकिन साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अभी भी डेटा लीक और ब्रोकर गतिविधियों पर निगरानी और दंड की व्यवस्था कमजोर है।
दिक्कत यह है कि इस पूरे खेल में कोई जवाबदेही नहीं है। न रोक, न सज़ा। जब तक कानून सख्ती से लागू नहीं होते, भारत समेत पूरी दुनिया में हमारी निजी जानकारी खुले बाजार में बिकती रहेगी।