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महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में ज्यादा होता है ब्रेन ट्यूमर का खतरा

Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 4465

फिट (मिरगी) के मरीजों में ब्रेन ट्यूमर की संभावना

4 अप्रैल 2019। देश ही नहीं दुनिया भर में महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में ब्रेन ट्यूमर का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि महिलाओं में ब्रेस्ट और अन्य प्रकार के ट्यूमर की संभावना अिधक होती है। यह बात 11वीं इंडियन सोसाइटी ऑफ न्यूरो-ऑन्कोलॉजी कॉन्फ्रेंस शामिल होने आए डॉ वेदांत राजशेखर ने मीडिया से चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि फिट (मिरगी) के मरीजों को एक बार अपने ब्रेन की जांच अवश्य कराना चाहिए क्योंकि उनमें ब्रेन ट्यूमर का खतरा ज्यादा होता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बीमारी का पूर्वानुमान लगाना फिलहाल संभव नहीं है इसलिए जागरुकता ही इस बीमारी से बचाव का बेहतर उपाय है।



कान्फ्रेंस के पहले दिन बंसल हास्पिटल एवं भोपाल मेमोरियल हास्पिटल में लाइव सर्जरी व कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें न्यूरो आंको विशेषज्ञों ने दो मरीजों के ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी कर इस सर्जरी से जुड़ी बारीकियों को इस कार्न्फेंस में भाग ले रहे चिकित्सकों को समझाया।



कॉन्फ्रेंस के पहले दिन, ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए उन्नत न्यूरो-सर्जिकल तकनीकों का प्रदर्शन करने वाली दो कार्यशालाएं, बेहतर रेडियोथेरेपी उपचार के लिए रेडियोथेरेपी कंटूरिंग, बंसल अस्पताल में आयोजित की गई, जबकि मॉलिक्यूलर न्यूरो-ऑन्कोलॉजी विषय पर एक और कार्यशाला बीएमएचआरसी में आयोजित की गई, जिसमें विभिन्न मॉलिक्यूलर बायोलॉजी तकनीकों द्वारा ब्रेन ट्यूमर के इलाज की दिशा में उन्नत तकनीकों का प्रद्रशन किया गया।



न्यूरोसर्जरी कार्यशाला में, टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के न्यूरो-ऑन्कोलॉजी से संबंधित विशेषज्ञों ने डॉक्टरों और एमडी छात्रों के सामने ऑपरेटिव प्रक्रियाओं का प्रदर्शन किया, जिसमंे मस्तिष्क के हिस्से एलोक्वेंट कॉर्टेक्स से ट्यूमर को इंट्रा-ऑपरेटिव मॉनिटरिंग का उपयोग करके हटाया गया। विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान के साथ दो लाइव सर्जरी और केस स्टडीज की प्रस्तुतियां आयोजित की गईं।



रेडियोथेरेपी की कार्यशाला में मेडिकल छात्रों को विभिन्न प्रकार के ब्रेन ट्यूमर जैसे की ग्लिओमास, मेटॉसिस और प्रारंभिक स्तर के ट्यूमर्स के इलाज की ट्रीटमेंट प्लानिंग एवं सटीक रेडियोथेरेपी की योजना बनाने से सम्बंधित प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया।

मॉलिक्यूलर न्यूरो-ऑन्कोलॉजी विषय पर व्याख्यान एवं आईएफसी-आईसीसी, फ्लो साइटोमेट्री, डॉट इम्यून-बाइंडिंग परख (डीआईए) विषयो पर व्यावहारिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। प्रोफेसर, न्यूरोसर्जरी, सीएमसी वेल्लोर एवं इंट्रा-ऑपरेटिव न्यूरो मॉनिटरिंग के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ वेदांतम राजशेखर ने मीडिया को बताया कि इस तरह की तकनीकें अधिकतम सुरक्षा के साथ ट्यूमर के फैलाव कि मात्रा में काफी सुधार करती हैं।



नई दिल्ली के मणिपाल हॉस्पिटल के सीनियर रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ अनुशील मुंशी ने प्रिसिशन बेस्ड रेडियोथेरेपी के बारे में बताया कि इस क्षेत्र में काफी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। रेडियोथेरेपी तरंगों को 3 डी तरीके से ट्यूमर के आकार के अनुसार निर्धारित किया जा सकता है। नतीजतन, आसपास के सामान्य मस्तिष्क पैरेन्काइमा पर इस थेरेपी के प्रभाव काफी काम हो जाते है।



वहीं मॉलिक्यूलर बायोलॉजी कार्यशाला में, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी की उन्नत तकनीकों का प्रदर्शन डॉ वाणी सन्तोष, प्रोफेसर, निमहंस (छप्डभ्।छै), बैंगलोर द्वारा किया गया। डॉ संतोष ने बताया कि हम सभी जानते हैं कि एक जैसे ट्यूमर वाले रोगियों के बीच उन पर की जाने वाली चिकित्सा परिणामों में महत्वपूर्ण अंतर है। इसका प्रमुख कारन ट्यूमर कि रचना विज्ञान में अंतर होना है। ब्रेन ट्यूमर कोशिकाओं के मोल्यूलर विश्लेषण से इन ट्यूमरो के उप-प्रकारों को अलग अलग करने और लक्षित करने में मदद मिलती है। यह ष्टार्गेटेड थेरेपीष् नामक नई उपचार पद्धति का आधार बनता है। चिकित्सा विज्ञान में इस टार्गेटेड थेरेपी को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं।

वेस्टर्न कंट्री की अपेक्षा इंडिया में आरएण्डडी कमजोर डॉ सुजीत प्रभु, न्यूरोसर्जन-वैज्ञानिक, एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर, टेक्सास, होस्टन, यूएसए जो ब्रेन ट्यूमर के लिए लेजर थेरेपी के विशेषज्ञ हैं, ने बताया कि कुछ प्रकार के ट्यूमर मष्तिस्क में काफी अंदर होते हैं जिनका ऑपरेशन करना मुश्किल है। इस तरह के ट्यूमर में, लेजर उपचार विधि को जांच के बाद सीधे ट्यूमर में पहुंचाया जा सकता है तथा ट्यूमर को नष्ट करने के लिए लेजर ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि वेस्टर्न कंट्री की अपेक्षा इंडिया में आरएण्डडी कमजोर है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से उपचार के प्रारंभिक परिणाम बहुत आशाजनक रहे हैं। हालांकि, लागत बहुत ज्यादा होने से इस तकनीक से उपचार को सर्वसुलभ बनाने और अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध कराने में अभी कुछ समय लगेगा।



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