
23 अक्टूबर 2025। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल एवं विश्वरंग फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में श्रीलंका के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा प्रस्तुत भव्य नृत्य नाटक “रावणेश्वर” का मनमोहक आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल रामलीला जैसी पारंपरिक नाट्य परंपराओं को जीवित रखना है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करना भी है। इस अवसर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे, डॉ अमिला दमयंती, विभागाध्यक्ष, नृत्य एवं नाट्य संकाय, इंडियन एंड एशियन डांस विभाग, श्रीलंका, कुलगुरु प्रो. रवि प्रकाश दुबे, एस.जी.एस.यू. के कुलगुरु डॉ. विजय सिंह, प्रति-कुलपति डॉ. संजीव गुप्ता, कुलसचिव डॉ. संगीता जौहरी विशेष रूप से उपस्थित थे।
कहानी एवं थीम
रावणेश्वर नृत्य-नाटिका मूल रूप से श्रीलंका में आयोजित होने वाली रामायण पर आधारित है। कथा के आरंभ में रावण का शिवभक्त रूप, वीणा वादन-कुशलता को दिखाया गया है। लेकिन जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती है, उसकी लालसा, अहंकार और उसकी विफलताओं का पटाक्षेप होता है, जिससे अंततः वह पतन की ओर बढ़ता है।
अभिव्यक्ति, संगीत व नृत्य
इस नाटिका में श्रीलंकाई पारंपरिक श्रीलंकाई वैशभूषा, मुखौटे, नृत्यशैली, संगीत और रंगमंचीय प्रस्तुति का समन्वय देखने को मिलता है। कलाकारों द्वारा भाव-भंगिमाओं (अभिनय), कथानक-वर्धक संवाद और नृत्य-मंचन के माध्यम से दर्शकों को कथा-भूमि में खींचा जाता है।
मंच-चित्र, प्रकाश-प्रभाव और समूह-नृत्यों के संयोजन से यह प्रस्तुति न केवल दृश्य-रूप से आकर्षक है, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी गहरी छाप छोड़ती है। उदाहरण के लिए, रावण के भीतर संघर्ष, उसकी पत्नी या अन्य पात्रों के संवाद-नृत्यवली, और उसकी अंतर्भावनाओं को दर्शने वाली सीनें दर्शकों को सहज रूप से प्रभावित करती हैं।
सांस्कृतिक पक्ष
इस नाटिका के माध्यम से कलाकार यह संदेश देना चाहते हैं कि महानता, शक्ति और प्रतिभा यदि स्व-नियंत्रण, दायित्व और मान-दंडों के बिना हों तो पतन निश्चित है। साथ ही, यह प्रस्तुति श्रीलंका-भारत सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक भी बनी हुई है — क्योंकि रावण की कथा-भूमि एवं लंका-संस्कृति के संदर्भ में यह नाटिका एक साझा सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करती है।
इस मौके पर श्री संतोष चौबे जी ने कहा कि यह आयोजन भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक संवाद और सौहार्द को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। यह मनमोहक नृत्य नाट्य प्रस्तुति श्रीलंका की पारंपरिक कलात्मक शैली और नाट्य परंपरा का अद्भुत संगम होगी। नाटक का विषय भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विविधता और पौराणिक कथाओं की गहराई को नए सिरे से समझने का अवसर प्रदान करेगा।
इससे पूर्व श्रीलंकाई कलाकारों ने 17 से 20 अक्टूबर, 2025 तक अयोध्या में संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश सरकार के आमंत्रण पर अंतरराष्ट्रीय रामलीला के हिस्से के रूप में 'रावणेश्वरा' नाटक का मंचन किया। यह प्रस्तुति अयोध्या में हुए दीपोत्सव 2025 का एक हिस्सा थी। उसके उपरांत मध्य प्रदेश में रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय और विश्वरंग फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में यह प्रस्तुति आयोजित हुई।
डॉ अमिला दमयंती, विभागाध्यक्ष, नृत्य एवं नाट्य संकाय, इंडियन एंड एशियन डांस विभाग, श्रीलंका ने बताया कि “‘रावणेश्वर’ एक डांस ड्रामा है, जिसे हमने वर्ष 2019 में कुम्भ मेले के लिए तैयार किया था। मैंने अपनी पीएच.डी. भारत और श्रीलंका की रामलीला पर तुलनात्मक अध्ययन विषय पर की है। इसी शोध कार्य के दौरान श्रीलंका के रामायण से संबंधित पात्रों और कथाओं का गहन अध्ययन करने के बाद, मैंने इस डांस ड्रामा की रचना की है।
‘रावणेश्वर’ लगभग 55 मिनट की नृत्य-नाट्य प्रस्तुति है, जिसमें श्रीलंका की पारंपरिक तीन प्रमुख नृत्य शैलियों - कैंडियन डांस, लो कंट्री डांस और सबरगमो डांस का समावेश किया गया है। इन शैलियों की मुद्राओं, अभिव्यक्तियों और तालों को भारतीय नाट्य शैली के तत्वों के साथ जोड़कर इस अनोखी प्रस्तुति की संरचना की गई है।
इस नृत्य नाटिका में श्रीलंका की लोककथाओं, तमिल परंपराओं (खंब रामायण) और रावण के चरित्र से जुड़ी विविध मान्यताओं को एक सूत्र में पिरोया गया है। इस प्रस्तुति में कुल 22 पात्रों को मंच पर जीवंत किया जाता है। इसमें पारंपरिक श्रीलंकाई वेशभूषा, मेकअप और संगीत का उपयोग किया गया है, जिससे यह एक शुद्ध श्रीलंकाई नृत्य-नाटिका (Pure Sri Lankan Dance Drama) के रूप में पहचानी जाती है।
अभिनय: इसरु रुषान – शिव ; लहिरु रोशन - रावण (कोरियोग्राफी) ; यसित जीवन – राम ; गयांदी – सीता ; हिरुनी – मंदोदरी ; इमाल्खा - सुपर्णखा ; तरुष – लक्ष्मण ; सचिन – जटायु
बैकग्राउंड अभिनेता – बिनुरे, अखिल, दिलशान, नियमित, प्रभा, तोषानी, चमुदी, संथाली, भवंति, कालिंदी, निमतरा
बैक स्टेज: इशामा (कत्थक), चमीर लक्षान (लाइट एंड ट्रैक)
निर्देशन/लेखन - डॉ अमिला दमयंती