
10 सितम्बर 2025। भारत ने पिछले एक वर्ष में अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में अपनी हिस्सेदारी कम की है। जानकारों के मुताबिक यह कदम रिज़र्व बैंक की ओर से विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन में अपनाए जा रहे अधिक सतर्क रुख को दर्शाता है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर 2024 में अमेरिकी प्रतिभूतियों में भारत का निवेश 247.2 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर था। लेकिन जून 2025 तक यह घटकर करीब 227 अरब डॉलर रह गया। भारत फिलहाल ट्रेजरी बिलों का दसवां सबसे बड़ा धारक है।
अमेरिकी ट्रेजरी बिल अल्पकालिक सरकारी ऋण प्रतिभूतियाँ होती हैं, जिन पर प्रतिफल में वृद्धि यह संकेत देती है कि निवेशक भविष्य में मजबूत आर्थिक वृद्धि, महंगाई या जोखिम बढ़ने की आशंका को देखते हुए ज्यादा रिटर्न की मांग कर रहे हैं।
विशेष बात यह है कि भारत का यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा से पहले ही उठाया गया था। हाल ही में फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि ट्रंप ने यूरोपीय संघ से चीन और भारत से आयात पर 100% तक टैरिफ लगाने का आह्वान किया है, जो रूस पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
हालांकि, ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को पुष्टि की कि दोनों देश अपनी व्यापार वार्ता जारी रखे हुए हैं और इसे जल्द निष्कर्ष तक पहुँचाने की उम्मीद है।
उद्योग विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत भविष्य में अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में निवेश और घटा सकता है। इसके समानांतर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशों से अपने स्वर्ण भंडार का बड़ा हिस्सा भी देश में स्थानांतरित किया है। अगस्त 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 690 अरब डॉलर आँका गया।