28 दिसंबर 2025। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताज़ा रिपोर्ट एक कड़वी सच्चाई सामने लाती है। यूरोप में शराब के सेवन से हर साल करीब 8 लाख लोगों की मौत हो रही है। यानी हर 11 मौतों में एक सीधे तौर पर शराब से जुड़ी है।
इस हफ्ते जारी WHO की फैक्टशीट के मुताबिक यूरोप दुनिया में सबसे ज्यादा शराब खपत वाला क्षेत्र बना हुआ है। नतीजा साफ है। समय से पहले मौतें, गंभीर चोटें और हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
रिपोर्ट बताती है कि 2019 के आंकड़ों के आधार पर ही लगभग 1 लाख 45 हजार लोगों की मौत शराब से जुड़ी चोटों के कारण हुई। इनमें आत्महत्या, सड़क हादसे और गिरने से हुई मौतें सबसे बड़ी वजह रहीं।
WHO का कहना है कि शराब का गहरा रिश्ता आपसी हिंसा से भी है। हमले, घरेलू हिंसा और अन्य हिंसक घटनाओं में शराब एक बड़ा फैक्टर बनकर उभरती है। पूरे यूरोप में हिंसक चोटों से होने वाली मौतों के पीछे इसका बड़ा हाथ है।
युवाओं के लिए खतरा और भी ज्यादा है। किशोरावस्था और शुरुआती युवा उम्र में शराब दिमाग के विकास और सही फैसले लेने की क्षमता को सीधे नुकसान पहुंचाती है। इससे याददाश्त कमजोर होती है, सीखने की क्षमता घटती है और लंबे समय में मानसिक बीमारियों व शराब से जुड़ी अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ता है।
WHO साफ कहता है कि किशोरों और युवा वयस्कों में चोट से जुड़ी विकलांगता और समय से पहले मौत का एक बड़ा कारण शराब बनी हुई है।
WHO यूरोप की क्षेत्रीय सलाहकार कैरिना फरेरा-बोर्गेस के शब्दों में, शराब एक जहरीला पदार्थ है। यह सिर्फ सात तरह के कैंसर और अन्य गैर-संक्रामक बीमारियों की वजह नहीं बनती, बल्कि सोचने-समझने की क्षमता और आत्म-नियंत्रण को भी कमजोर करती है। प्रतिक्रिया समय धीमा होता है, तालमेल बिगड़ता है और जोखिम भरा व्यवहार बढ़ता है। यही कारण है कि शराब से जुड़ी ज्यादातर चोटें रोकी जा सकती हैं, फिर भी जानलेवा साबित हो रही हैं।
डेटा यह भी दिखाता है कि शराब से होने वाली चोटों से मौतों का करीब आधा हिस्सा पूर्वी यूरोप में दर्ज होता है, जबकि पश्चिमी और दक्षिणी यूरोप में यह आंकड़ा 20 फीसदी से कम है।
रूस का उदाहरण थोड़ा अलग है। पिछले 20 सालों में वहां शराब पीने की आदतों में बदलाव देखने को मिला है। शराब न पीने वालों की संख्या लगभग दोगुनी हुई है और अब वोदका की जगह बीयर सबसे ज्यादा पी जाने वाली शराब बन गई है।
सीधा संदेश साफ है। शराब कोई मामूली सामाजिक आदत नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जिसे नज़रअंदाज़ करना हर साल लाखों जिंदगियों की कीमत चुका रहा है।














