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'लव जिहाद' मामलों पर विधानसभा में खुलासा: 283 में से 50 मामलों में आरोपी बरी, सिर्फ 7 को सजा

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 301

धार्मिक स्वतंत्रता कानून के पांच वर्षों के आंकड़े आए सामने, इंदौर में सर्वाधिक केस, नाबालिगों की संख्या भी चिंता का विषय

6 अगस्त 2025। मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में सोमवार को एक ऐसा तथ्य सामने आया जिसने राज्य के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। विधानसभा में सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में इस कानून के तहत दर्ज 283 मामलों में से 50 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं, जबकि सिर्फ 7 मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाया है।

यह खुलासा विधायक आशीष गोविंद के सवाल के लिखित उत्तर में किया गया, जिसमें 1 जनवरी 2020 से 15 जुलाई 2025 तक के आँकड़े मांगे गए थे।

क्या कहते हैं आंकड़े?
सरकार के जवाब के अनुसार:
कुल दर्ज मामले: 283
जिनमें पुलिस जांच पूरी हुई: 86
इनमें आरोपी बरी हुए: 50
दोष सिद्ध होकर सजा पाने वाले: 7
आपसी समझौते से निपटे केस: 1
अभी भी लंबित केस (कोर्ट में): 197

आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों की बड़ी संख्या अभी न्यायिक प्रक्रिया में लंबित है, जबकि फैसले हो चुके मामलों में दोषमुक्ति की दर सजा से कहीं अधिक है।

नाबालिगों के मामले और क्षेत्रीय आंकड़े
प्रस्तुत आँकड़ों में एक और चिंताजनक बात यह सामने आई कि 71 पीड़िताओं की उम्र 18 वर्ष से कम थी। जिलावार आंकड़ों में इंदौर सबसे आगे है, जहां पिछले 5 वर्षों में 74 मामले दर्ज हुए। इसके बाद भोपाल (33 मामले), धार (13), उज्जैन और खंडवा (12-12 मामले) रहे।

सियासी बयानबाजी शुरू
विधानसभा में आंकड़े सामने आने के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी देखने को मिली। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा, "लव जिहाद एक संगठित अपराध है, और इससे जुड़े लोगों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। कानून को और सख्ती से लागू किया जाएगा।"

वहीं, राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का विषय बन गया है कि जब इतने अधिक मामले कोर्ट में टिक नहीं पा रहे, तो कानून के दुरुपयोग की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।

कानूनी विशेषज्ञों की नजर में
कानूनविदों का कहना है कि ऐसे कानूनों में सख्ती से अधिक साक्ष्यों और निष्पक्ष जांच की जरूरत होती है। “अगर 86 मामलों में से 50 में बरी होना पड़ा, तो यह न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल नहीं, बल्कि प्राथमिक जांच की गुणवत्ता और तथ्यों की गंभीरता पर विचार का विषय है,” एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा।

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